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धर्मामृत
() राग कौशिया-तीन ताल
या नगरी में क्युं कर रहना।
राजा लूट करे सो सहना ॥ या० ॥ टेक ॥
नहि व्यापार इहां कोइ चाले। . नहि कोइ घरमाहे गहना ॥ या० १॥
तसकर पण निज दाव विचारे । __ भेद निहाले फिर फिर रहना । २
नारी पंच सिपाई साथे।
रमण करे नित कुणसें कहना ॥ या० ३॥ अंजलि जल जिम खरची खूटे ।
आखर इग दिन हेगा परना । ४ यातें नवनिधि चारित संयुत ।
इंग ज्ञानानंद हेगा सरना ॥ या० ५॥ .