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धर्मामृत .
राग झिंझोटी-ताल दादरा मेरे तो मुनि वीतराग,
चित्त माहे जोई। मे० ॥ टेक ॥ ' और देव नाम रूप,
दूसरो न कोई ॥१॥ साधन संग खेल खेल, - जाति पात खोई । अब तो वात फैल गई, ___ जाने सब कोई ॥२॥ घाति करम भसम छाण,
देह में लगाई। परम योग शुद्ध भाव,
खायक चित्त लाई ॥३॥ तंबू तो गगन भाव,
भूमि शयन भाई । चारित नव निधि सरूप,
ज्ञानानंद भाई ॥४॥