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ज्ञानानन्द
राग भैरव-तीन ताल
भोर भयो उठ जागो मनुवा,
साहेब नाम संभारो । भो० ॥ टेक ॥
सुतां सुतां रयन विहानी,
अब तुम नींद निवारो ॥
मंगलकारि अमृतवेला,
थिर चित्त काज सुधारो ॥१॥
खिनभर जो तुं याद करेगो,
सुख निपजेगो सारो ॥ वेला वीत्या हे पछतावो,
क्यु कर काज सुधारो ॥२॥
घरब्यापारे दिवस वितायो,
राते नींद गमायो ।
इन वेला निधि चारित्र आदर,
ज्ञानानंद रमायो ॥ ३ ॥