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ऋतुं
क्युं
चारित्र
मांहे
छाण
चित्त
सहु
'परमाद
कागल
मगरुरी
नहीं
गाफील
रहे
मांहे
आखर
इग
हेगा
इग
हेगा.
(२)
(३)
(४)
तू
क्यूं
चारित
मांहिं
छानि
चित
चवदह
सव नाहि
प्रमाद
कागद हे
इग
मगरूरी
नहिं
गाफिल
रहो
मांहिं
आखिर
भाइ
लाख
चौराशी
योनि
माहे
रूपें
इक
होगा
इक
हैगा
अवधू
सुता
हे
भरोसा
ए
अजहु
बांधी
सुनी
चारित्र
(५)
(६)
(७)
*प्रस्तुत संग्रह में 'तुं' के स्थान में 'तू' समझना । x मुद्रित 'क्युं' के स्थान में 'क्यूं' समझना ।
भाई
लख
चौरासी
योनी
मह
रूपे
चौदह
नाहीं
he
इक
अवधू,
सूता'
है
भरोसा
या
अजहुँ
वांधी
सुनि
चारित
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