SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ प समय में सौराष्ट्र का राजा मांडलिक था । इनके विषय में अनेक चमत्कार सुने जाते है । काठियावाड में तलाजा के पास गोपनाथ-~-समुद्रतटवर्ती स्थान-नामक महादेव के स्थान में इनकी प्रतिमा है । संत तुकाराम के समान ये भक्त कवि ने अस्पृश्यों का भी उद्धार करने के लिए अधिक प्रयास किया था । इनका भजन ---- "वैष्णव जन तो तेने कहीए जे पीर पराई जाणे रे" राष्ट्र के प्राणसमान महात्मा गांधीजी को भी अधिक प्रिय है। दयाराम-समय उन्नीसवीं शताब्दी । ज्ञाति साठोदरा ब्राह्मण । स्थान चाणोद-गूजरात । दयाराम कवि वल्लभसंप्रदाय का था । इनके गुरु का नाम इच्छाराम भट्ट । 'रसिकवल्लभ' 'पुष्टिपदरहस्य' और 'भक्तिपोषण' इत्यादि अनेक ग्रंथ इनके बनाए हुए है । निष्कुलानंद-समय उन्नीसवीं शताब्दी । संप्रदाय स्वामीनारायण । 'भक्तिनिधि ' 'वचननिधि' और 'धीरजआख्यान' वगेरे अनेक ग्रंथ इनके रचे हुए हैं। मुक्तानंद - समय उन्नीसवीं शताब्दी । संप्रदाय स्वामीनारायण । वतन धांगध्रा-काठियावाड । 'सतीगीता' 'उद्धवगीता' इत्यादि ग्रंथ इनकी रचना है। भोजो भगत- समय उन्नीसवीं शताब्दी । ये काठियावाड . के ज्ञाति से कुणवी होने पर भी वडे नामी और मर्मवेधक . कवि थे । गलिया घोडा चावुक लगाने पर ही चलता है इस न्याय से विलासपतित समाजरूप गलिये घोडे को इन्होंने अपने भजन रूप चाबुक द्वारा खूब फटकारा है ।
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy