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समय में सौराष्ट्र का राजा मांडलिक था । इनके विषय में अनेक चमत्कार सुने जाते है । काठियावाड में तलाजा के पास गोपनाथ-~-समुद्रतटवर्ती स्थान-नामक महादेव के स्थान में इनकी प्रतिमा है । संत तुकाराम के समान ये भक्त कवि ने अस्पृश्यों का भी उद्धार करने के लिए अधिक प्रयास किया था । इनका भजन ---- "वैष्णव जन तो तेने कहीए जे पीर पराई जाणे रे"
राष्ट्र के प्राणसमान महात्मा गांधीजी को भी अधिक
प्रिय है। दयाराम-समय उन्नीसवीं शताब्दी । ज्ञाति साठोदरा
ब्राह्मण । स्थान चाणोद-गूजरात । दयाराम कवि वल्लभसंप्रदाय का था । इनके गुरु का नाम इच्छाराम भट्ट । 'रसिकवल्लभ' 'पुष्टिपदरहस्य' और 'भक्तिपोषण' इत्यादि
अनेक ग्रंथ इनके बनाए हुए है । निष्कुलानंद-समय उन्नीसवीं शताब्दी । संप्रदाय स्वामीनारायण ।
'भक्तिनिधि ' 'वचननिधि' और 'धीरजआख्यान' वगेरे
अनेक ग्रंथ इनके रचे हुए हैं। मुक्तानंद - समय उन्नीसवीं शताब्दी । संप्रदाय स्वामीनारायण ।
वतन धांगध्रा-काठियावाड । 'सतीगीता' 'उद्धवगीता'
इत्यादि ग्रंथ इनकी रचना है। भोजो भगत- समय उन्नीसवीं शताब्दी । ये काठियावाड . के ज्ञाति से कुणवी होने पर भी वडे नामी और मर्मवेधक .
कवि थे । गलिया घोडा चावुक लगाने पर ही चलता है इस न्याय से विलासपतित समाजरूप गलिये घोडे को इन्होंने अपने भजन रूप चाबुक द्वारा खूब फटकारा है ।