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न होने के कारण दुष्प्राप्य से हो गये हैं। प्रस्तुत कवि जब काशी से लौटकर अहमदावाद आए तब गुजरात के उस समय के बादशाह महोवतखान ने इनका बड़ा स्वागत किया था । यशोविजयजी अवधान भी करते थे । ये बडे तार्किक थे, प्रतिभासंपन्न कविराज थे और सर्वधर्मसमभावी . आध्यात्मिक पुरुष थे । इनका स्वर्गवास डभोई (वडोदा स्टेट)
में हुआ जहां उनकी समाधि बनी हुई है। आनंदघन - दूसरा नाम लाभानंद । समय सत्तरहवीं शताब्दी ।
ये बडे आध्यात्मिक पुरुष थे। सुना जाता है कि इन्होंने मेडता-मारवाड में समाधि ली थी । इनके विषय में कोई निश्चित इतिवृत्त नहीं मिलता। ये शुद्धक्रियापक्षी, · अंतर्मुख
और जैनआगम के गहरे अभ्यासी थे। इनके रचे हुए अनेक पद और स्तवन मिलते हैं जिनका समुच्चित नाम 'आनंदघनवहोंतरी' और 'आनंदघनचोवीशी' है। आनंदघनजी
के साथ यशोविजयजी का उत्कट आध्यात्मिक प्रेम रहा था । . उदयरत्न - अठारवी शताब्दी । ये खेडा (गूजरात). के
रहनेवाले बडे नामी कवि हुए हैं । वडे तपस्वी, त्यागी
और आध्यात्मिक मुनि थे । 'रत्ना' नामक भावसार के ये गुरु थे । इनका देहांत मिआंगाम (गूजरात) में हुआ है। इनकी सब कृतियां भाषा में ही हुई हैं । भजन, भास, रास, शलोका, स्वाध्याय, स्तवन, स्तुति, वगेरे इन्होंने
अधिक वनाए हैं । इनको ‘उपाध्याय' की पदवी थी । आनंदवर्धन - अठारहवीं शताब्दी । ये महात्मा खरतरगच्छ के
थे । इन्होंने चोवीश तीर्थकर के स्तवन बनाए हैं जो .. 'चोवीशी' ने नाम से ख्यात है। .