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धर्मामृत सं० भू-संभारय-प्रा० संभालय-संभाल । 'भृ' धातु 'धारण' और 'पोषण' अर्थमें प्रसिद्ध है।
२५४. उजाळ- प्रकाशित कर । सं० उज्ज्वालय-उज्जालय-उजाळ । 'ज्वल' धातु का 'दीप्ति' अर्थ प्रतीत है। २५५. निभाव्यो-निर्वाह किया । सं० निर्वाहितः-निव्वहाविओ-निव्हाव्यो-निभाव्यो।
भजन ९७ वां
२५६. फकीरांदी 'दो' शब्द पष्ठीविभक्ति का सूचक है और पंजाबी भाषा
२५७. चवावे-चावना। "चर्व अदने"-(धातुपारायण भ्वादिगण अंक ४५२) सं० चर्वयति प्रा०-चवावेइ-चबावें।
'चावना' और गुजरातो 'चावयूँ क्रियापद का मूल 'चर्व' धातु में है।
२५८. ओढ़ें
सं० अव+स्तृ-प्रा० ओत्थ-ओढ । 'स्तृ' धातु 'आच्छादन' अर्थ में प्रसिद्ध है। "स्तूंगट आच्छादने"-(धातुपारायण