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________________ समाई [२१९] स्वादिगण अंक ७)। हिन्दी 'ओढना,' 'ओढ'' 'ओढवू (गू०) शब्दे की प्रकृति भी 'अव--स्तृ' है। भजन ९८ वां २५९. समाई सं० समाप्यते - प्रा० समावीअइ-समाई । २६०. मुकर-दर्पण । सं० मुकुर । २६१. जस छाई -जैसी छाया । सं० छाया प्रा० छाहो-छाई । २६२. आपा-आत्मा सं आत्मा-प्रा० अप्पा-आपा । २६३. चीन्हे-पीछान करे । सं० चिह्न-चिह्नित-प्रा० चिन्हिअ-सप्तमी-चिन्हिएचिन्हे । २६४. काई-सेबाल-सल 'नील सेवाल' अर्थ में देश्य 'कावी' शब्द है. प्रस्तुत 'काई', देश्य 'कावी' का रूपांतर है । "कावी णीला"-"कावी नीलवर्णा"-( देशीनाममाला वर्ग २ गा० २६)। २६५. माटी । सं० मृत्तिका-प्रा० मट्टिआ-माटी २६६. मनसा-इच्छा । सं०मनीषा-प्रा०मनीसा-मनसा। २६७.परसै-स्पर्श करे ।संस्पृशति-प्रा०फरिसइ-परसे।
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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