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विनयविजय - समय सत्तरहवीं शताब्दी । माता का नाम
राजश्री और पिता का नाम तेजपाल | गुरु का नाम कीर्तिविजय उपाध्याय । प्रस्तुत कवि गुजरात के हैं । इनके चनाये हुए ग्रंथों से इनका संस्कृत भाषा विषयक और जैन आगम विषयक सांप्रदायिक पांडित्य प्रतीत होता है । ' हैमलघुप्रक्रिया ' नामक छोटासा संस्कृत व्याकरण भी इन्होंने बनाया है और उस पर एक वृहद्वृत्ति का भी निर्माण किया है । भाषा में भी इनके स्वाध्याय-स्तुति अधिक मिलते हैं । पंडित जयदेव का बनाया हुआ संस्कृत य ग्रंथ गीतगोविंद - इसमें शृङ्गार अधिक होने से अधिक प्रसिद्ध है । इसी प्रकार का एक गेय ग्रंथ. प्रस्तुत कवि विनयविजयजी ने बनाया है । परन्तु उसमें शृङ्गार के स्थान में शांतसुधारस है । जयदेव का ग्रंथ प्रसिद्ध प्रसिद्ध हिन्दी रागों में है और विनयविजयजी का शांतसुधारस प्रसिद्ध प्रसिद्ध गुजराती देशी के रागों में है । देशी के राग. होने पर भी वे गेय काफी, टोडी, रामगिरि, केदारो इत्यादि. प्राचीन रागों में भी गीत के रूप में चल सकते हैं । नमूना के तौर पर
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कलय् संसारमतिदारुणं
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जन्ममरणादिभयभीत ! रे ।
मोहरिपुणेह सगलग्रहं
प्रतिपदं विपदमुपनीत ! रे ॥ कलय०
उक्त शांतसुधारस से कवि का संस्कृत भाषा विषयक पांडित्या
अनोखा ही प्रतीत होता है । कवि में सांप्रदायिक होते हुए भी
अपने
उनके अन्यान्य ग्रन्थों भजनों में तो वे
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