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धर्मामृत
सं० धर्म - धम्म - घाम । "उष्णेऽपि धर्मः " - ( अमरकोश
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तृतीयकांड, नानार्थ वर्ग श्लो० १४१ )
भजन ४९ वां
१६२. भीजे - पीघले
भिद्यते - भिज्जए - भीजए -भीजे
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'भिंजना' और 'भजावुं' (गु० ) क्रियापद की प्रकृति 'भिज्जए' में है ।
' भिद्' धातु द्वैधीकरण-भेद - अर्थ में है । विना भेद हुए चित्त पोघलता नहि इससे 'भिज्जए' से 'भीजे' लाना ठीक दीखता है । १६३. चेंल-दास
सं० चेट - प्रा० चेडो - चेलो ।
भजन ५१ वां
१६४. छीलर - पाणी का गड्ढा - खाबोचिया
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“छिल्लरं पल्वलम् " ( देशी नाममाला वर्ग ३ गाथा २८) छिल्लर शब्द देश्य है उस पर से 'छीलर ' शब्द आया है ।
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भजन ५२ वां
१६५. ऊपगृह - घर के पास का भाग । सं० उपगृह । भजन ५४ वां
१६६. सत्त - सत्य अथवा सत्त्व