________________
[१७६]
धर्मामृत
'गवाक्ष' का शब्दार्थ 'गाय की आंख' होता है । 'वाता - यन' की रचना गाय की आंख जैसी होती होगी इससे 'वातायन' भी 'गवाक्ष' के नाम से प्रतीत हुआ हो ऐसा मालूम होता है । आचार्य हेमचन्द्र कहते हैं कि
" वातायनो गवाक्षश्च जालके " - ( हैं अभिधानचिंतामणि कांड ४ श्लो० ७८ ) काठीयावाड में तो भींत में जहां दीपक रखते हैं उस जगह का भी नाम 'गोखलो' है । वातायन के आकार साम्य से ऐसी रूढि चल पडी होगी ।
१०६. डेरा - वास - निवास ।
सं० ' द्वार' से प्रा० 'देर' शब्द आता है । प्रस्तुत 'डेरा'' और प्रा० 'देर' में साम्य है और अर्थ में भो विशेष भेद नहीं दीखता । जहां निवास होता है वहां 'द्वार' भी होना चाहिए इस कारण से 'डेरा' शब्द 'निवास' अर्थ को प्रतीत करने लगा हो !!! वा 'डेरा' शब्द संस्कृत प्राकृतमूलक न होकर अन्य भाषा का हो। भजन २४ वां
पांच जात- १ एक इंद्रियवाला जीव - पेड-पत्ते इत्यादि । २ दो इन्द्रियवाला जीव - शंख-कीडे इत्यादि । ३ तीन इन्द्रिय वाला जीव चींटी इत्यादि । ४ चार इन्द्रियवाला जीव - भमरा इत्यादि । ५ पांच इंद्रियवाला जीव - मानव - पशु इत्यादि । आत्मा का स्वरूप उक्त पांच जात का नहि ।