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छांह
_[१७७] १०७. छांह-छाया ।
सं० छाया-प्रा० छाही-छांह । छायो (गुज०) 'छाया' में 'य' अर्धस्वर है उसके स्थान में 'ह' का उच्चारण हुआ है। प्रस्तुत 'ह' महाप्राण नहि है किन्तु 'य' के समान उच्चारण वाला है। ___ शुद्ध आत्मा में कोई कुल की छाया भी नहीं है। ऐसा भाव भजनकार का है।
प्रतिछाया-पडिछाया-पडछायो (गुज०)। प्रतिछायापडिछाही-पडछाई, परछाइ, पडछांह, परछांह, (गुज० पडछांयो)
भजन २५ नां १०८. डूंगर-डुंगरा।
"डुंगरो सेले"-(देशीनाममाला वर्ग ४ गाथा ११) आचार्य हेमचन्द्र 'डुगर' शब्द को 'शैल' अर्थ में बताते हैं और उसको 'देश्य' कहते हैं । 'ढुंगर' पर जाना कष्टमय होता है । इससे इसकी व्युत्पत्ति 'दुर्गतर' शब्द से हो सकती है। दुर्गतर-दुग्गअर-दुग्गर-डुंगर । 'दुर्गतर' और 'डुंगर' में अर्थसाम्य के साथ शब्दसाम्य भी है और वाग्व्यापार की प्रक्रिया से भी 'दुर्गतर' से 'इंगरे' बनता सयुक्तिक मालूम होता है ।
१०९. नातरां-पुनर्विवाह-विजातीय संबंध । 'नातरा' की व्युत्पत्ति निश्चित रीत से ज्ञात नहीं हैं परन्तु