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________________ छिनाला [१५९] मालूम होते हैं। जो पुरुष या स्त्री, काल का छेद करते हैं यानि समय-को लांघ जाते हैं अर्थात् समाजहितचिन्तक धर्मशास्त्रकारों ने स्मृतियों में जो समय स्त्रीसंग के लिए नियत किया है उस समय को न मान कर उस समय को छेदनेवाले-उस समयका उल्लंघन करनेवाले और अपने स्वच्छन्द से यथेष्ट वर्तनेवाले हैं वे 'छिन्नकाल' कहे जा सकते हैं। छिन्नः कालः यैः ते छिनकालाःजिन्होंने काल को छिन्न कर दिया है वे । 'छिन्नकाल' शब्द का ऐसा व्यापक भाव देखने से एक पत्नीवाला गृहस्थ भी यदि ऋतुकाल के अतिरिक्त स्त्री संग करता हो तो वह भी 'छिनकाल' के उपनाम को पाता है और जो अतिभोगी है वह तो स्पष्टतया 'छिन्नाल' ही है । जब 'छिन्नाल' शब्द प्रवृत्त हुआ होगा तब उसका उक्त व्यापक भाव होगा परंतु समय बीतने पर उसका उक्त भाव संकुचित हो गया है और वर्तमान में वह शब्द लोक प्रतीत 'व्यभिचारी' के भाव को सूचित करता है। आध्यात्मिक दृष्टि से तो 'छिन्नाल' शब्द का उक्त व्यापक भाव ही ठाक प्रतीत होता हैः सं. छिन्तकाल प्रा० छिन्नआल-छिनाल । प्रस्तुत व्युत्पत्ति संगत होने से छिन्नाल शब्द व्युत्पन्न दोस्वता है तो भी साहित्य में उसका प्रचार विरल होने से उसको देश्य में गिना गया लगता है अथवा 'छिन्नकाल के समान 'छिन्नाचार' शब्द से भी हिन्नाले पद
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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