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धर्मामृत
'पाखे' 'पांख' 'पंखी' 'पंखा' ये सब शब्दों के मूलमें भी 'पक्ष' शब्द है । 'पखाज' शब्द का 'पख' भी 'पक्ष' जन्य है । ( पखाज - पक्षवाद्य )
६२. भांखे - भाषण करे - बोले
सं० भाषते । 'ष' का 'ख' उच्चारण करने से ' भाखते ' । 'भाखते' से 'भाखे' वा 'भांखे' । 'भा' के 'आ' का अनुनासिक ध्वनि करने से 'भा' का 'भां' हो जाता है । एक अवर्ण के अढार भेद है और उसमें उसका अनुनासिक भेद भी समाविष्ट ६३. रीता - खाली - निष्फल |
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सं० रिक्त - प्रा०रित । 'रित्त' से रीता । 'रिक्त' में धातु 'रिच्' है ।
६४. छिनाला - व्यभिचारी । प्रस्तुत में 'एक लक्ष्य पर स्थिर न रहनेवाला ' '
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आचार्य हेमचन्द्र अपनी देशीनाममाला में लिखते हैं कि जारेसु छिन्न- छिन्नाला " - ( वर्ग तृतीय लो० २७ ) उक्त उल्लेख से 'छिन्नाल' शब्द का 'जार' - ' व्यभिचारी' अर्थ प्रतीत है । प्रस्तुत 'छिनाला' वा गुजराती के 'छिनाळवा' शब्द का मूल 'छिन्नाल' शब्द में है । 'छिन्नाल' शब्द यद्यपि देश्य है तो भी विशेष विचार करने से उसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार हो सकती है । 'छिन्नाल' शब्द में 'छिन्न' और 'काल' ये दो पद
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मूल .