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धर्मामृत आ सकता है । छिन्न:-आचारः येन सः छिन्नाचारः प्रा-छिन्नायारो-छिन्नायालो-छिन्नालो-छिनालो। जिस पुरुष वा स्त्रीने शास्त्रविहित आचार को छेद दिया हो-तोड दिया हो वे 'छिन्नाचार' कहे जाते हैं। प्राकृत भाषाओ में 'र' और 'ल' का परस्पर परिवर्तन सुप्रतीत है। अथवा 'छिन्नाल'का पर्याय 'छिन्न' को देखने से दूसरी भो कल्पना होती है। पुराने समय में जो पुरुष जिन इंद्रिय से अपराध करता था उसकी वह इंद्रिय काट दो जाती थी-छेदी जाती थी। असत्य बोलने वालों की जोभ छेदी जाती थी, हाथ से चौर्य करने वालों का हाथ छेदा जाता था इसी प्रकार व्यभिचारी पुरुष की जननेंद्रिय छेदी जाती थी इस से उसकी प्रसिद्धि 'छिन्न' शब्द से होती थी। इस कारण छिन्न शब्द 'व्यभिचारी' अर्थ में बताया गया है। वही 'छिन्न' को 'ल' प्रत्यय लगाने से और उसके अन्त्यस्वर को दीर्घ करने से भी 'छिन्नाल' शब्द बना हो। 'छिन्न' से 'छिन्नाल' बनाने की कल्पना में पूर्वोक्त व्यापक भाव आ सके गा वा न आ सकेगा यह अनिश्चित है। कुछ भी हो उक्त कल्पनात्रय से 'छिन्नाल शब्द व्युत्पन्न दीख पडता है । दर्शित व्युत्पत्ति घटमान है वा वा अघटमान तत्र व्युत्पत्तिविदां प्रामाण्यम् ।
६५. झख-मच्छ-मच्छी। सं० 'झष के 'घ' का 'ख' बोलने से झख ।