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प्रस्तावना
बेचरदासजी ने
किया है ।
यह ' धर्मामृत' संग्रह पंडित इसमें वैराग्य रस से भरे हिन्दी और गुजराती के
१०१ गीत
हैं । इसमें विशेषता यह है कि कबीर, नानक, नरसी महेता, सूरदास के साथ साथ ऐसे महात्माओं के गीत हैं जो जैन सम्प्रदाय के समझे जाते हैं और जिन में से अधिकांश गुजरात के रहने वाले थे । मुझे इससे पहले इन जैन कवि महात्माओं का ज्ञान न था और उनकी कृतियों का संग्रह देखने को नहीं मिला था ।
इस संग्रह को देख कर मेरे हृदय में दो विचार शैली उठीं - एक तो यह कि हिन्दी भाषा सदियों से हमारे देश में बहुत व्यापक रही है और दूसरे यह कि शुद्ध भाव के मौलिक विचार करने वाले सदा आन्तरिक अनुभव के बाद सीमित साम्प्रदायिकता के बन्धनों से ऊपर उठते हैं ।
हिन्दी में संत साहित्य जिस ऊंची श्रेणी का है वह न संस्कृत में है और न किसी अन्य भाषा में है । उसकी जड ही हिन्दी में पड़ी है । कबीर इस साहित्य के सिरमौर हैं । गुरु नानक, दादू, पलट्, रैदास, सुन्दरदास, मीरांबाई, सहजोवाई आदि प्रसिद्ध महात्माओं में कबीर की वानी की छाप स्पष्ट दिखायी