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'दिल्लीवाले मेरे स्नेही भाई गुलावचन्दजी जैन को प्रस्तुत संग्रह की प्रस्तावना के लिए श्री टंडनजी का निर्देश कर के एक पत्र दिया। 'उन्होंने इस बात की चर्चा हिंदी हरिजन के संपादक और हिंदी साहित्य के गौरवरूप श्रीमान् वियोगी हरिजीसे की, (जब मैं दिल्ली में रहा था तब मुझको श्रीमान् हरिजी का भी परिचय प्राप्त करने का सुअवसर मिला था) उन दोनों महाशयों की प्रेरणा से
और मेरे पत्रव्यवहार से श्रीटंडनजीने प्रस्तुत संग्रह के लिए कुछ लिखने का स्वीकार कर लिया और अधिक कार्यभार की व्यग्रता के कारण वे शीघ्र तो न लिख सकतें परंतु मेरी तरफसे शीघ्रता करने के लिए भाई गुलावचंद उनके पास लखनऊ के स्पीकरभवन में जा बैठा और इसी कारण आज पाठकों के समक्ष श्रीटंडनर्जी के गांभीर्यपूर्ण दो शब्दों को भी मैं प्रस्तुत संग्रह में दे सका हूँ।
एतदर्थ प्रस्तुत गोलेच्छा ग्रंथमाला के संचालक, श्रीमान् टंडनजी के, भाई हरिजी के और भाई गुलाबचन्दजी जैन के सविशेष ऋणी हैं और मैं भी ।।
___ मेरी लिखी हुई 'शब्दों की व्युत्पत्तियां और समझ' में हिंदी भाषा की जिनजिन गलतीयों का श्रीमान् टंडनजीने निर्देश ६ किया है उनको मैं सादर स्वीकार करता हूँ और भविष्य में हिंदी लिखने में अधिक सावधान रहने का संकल्प करता हूँ. और श्रीमान् टंडनजी निर्दिष्ट सब गलतीयों का शुद्धिपत्रक भी प्रस्तुत संग्रह के साथ ही दे देता हूँ । मेरी अशुद्धियों के लिए मैं फिर भी हिंदी साक्षरों से क्षमा मांगता हूँ ।
. वचनदास