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विशेष स्मरण
आज से प्रायः सात आठ वर्ष पहले जब कि श्रीमान् पुरुषोत्तमदास टंडनजी गुजरात विद्यापीठ में आए थे तब मुझको उनका परिचय प्राप्त करने का अवसर मिला था। यों तो श्रीमान् टंडनजी प्रखर राष्ट्रपुरुष है और यू० पी० के राष्ट्रस्तंभो में उनकी अग्रगणना है, तो भी राष्ट्रभक्ति के साथ साथ उन्होंने साहित्यभक्ति को भी अच्छा स्थान अपने हृदय में दिया है यह वात मुझको उनके प्रथम परिचय से ही अवगत हो गई थी। हमारी वातचीत का विषय प्राकृत साहित्य और जैन आगम था, मात्र पंद्रह-बीस मिनिट तक की वातचीत से उनके साहित्यभक्ति, अभ्यासगांभीर्य और असाधारण साधुता आदि कई सद्गुणों का है प्रभाव आजतक मेरे मन में अंकित है । जव प्रस्तुत संग्रह छप कर तैयार हुआ तब मेरा विचार हुआ कि इसके लिए दो शब्द भी श्रीटंडनजी से अवश्य लिखवाना। मैं जानता था कि आप आजकल राष्ट्रीय महासभा की ओर से लखनऊ की राजसभा के संचालक-स्पीकर-के वडे पद पर कार्य करते हैं इससे अनेक तरह के कार्यभार से दवे हुए होंगे तव भी मैंने तो धृष्ट होकर