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________________ इग [१५१] ही नहि । क्योंकि 'खा गया' का अर्थ ' खाकर गया' और 'सो गया' का अर्थ 'सोकर गया' ऐसा हो तो 'खा गया' 'सो गया' ये दोनों पद भिन्न हो है— उसमें कोई विवाद नहि । वाला ४१. इग - एक सं० • एक प्रा० इक्क - इक-इग ४२. छिन - क्षण - कम से कम काल 'खिन' का टिप्पण १४ देखो । भजब ७ वां ४३ अवधू - अबधूत-मस्त - आत्मलक्षी - आत्मा की धुन stic सं० अवधूत प्रा० अवधूअ । अवधू—अवधू अवधूत अबधूत अथवा 'अबधू' को अन्य व्युत्पत्ति भी इस प्रकार है: सं० आत्मधूत - प्रा० अप्पधूत अप्पधूअ अवधूत, अवधू, अवधू प्रस्तुत अन्य व्युत्पत्ति में अर्थदृष्टि से भी असंगतता नहि | आत्मना धूतः - आत्मधूतः अथवा आत्मा धृतः यत्व सौ आत्मतः इस प्रकार तत्पुरुष वा बहुव्रीहि समास घट सकता है । 'धूत' शब्द 'महान् त्यागी' - 'महान् संयमी' – 'उग्र आन
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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