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धर्मामृत
प्राकृत के 'बहुलम् नियम से बन सकेगा यह ख्याल में रहे । तात्पर्य यह है कि लाइजाउ-लेजाओ। खाइजाउ-खाजाओ। दाइजाउ-देजाओ । इत्यादिक में 'ला', 'खा' और 'दा' प्रभृति मूल धातु है और 'इज्जाउ' इतना अंश प्रत्यय का अखंड है ऐसी कल्पना हो सकती है और इस कल्पना में व्याकरण का बाध नहि है । अब दूसरा एक ओर प्रश्न ऊठता है कि जिस प्रकार 'लेजाओ' इत्यादि अखंड क्रियापद हो तो क्रिया के पूर्णभाव को बताने वाले 'खा गया' 'कर गया' ले गया' 'दे गया' वगेरे पद भी अखंड है वा उनमें 'खा' 'गया' 'कर' 'गया' इस तरह भिन्न भिन्न अंश है ? प्रस्तुत प्रश्न और उपर्युक्त 'लेजाओ' इत्यादिक को अखंडता की कल्पना भी विशेष विचारणीय है और इसकी चर्चा विशेष विचार तथा अधिक समय की अपेक्षा रखती है उस से इस चर्चा को अन्य प्रसंग पर रखना उचित है। 'खा गया 'सो गया' इत्यादि पदों में जो 'गया' अंश है वह 'गम्' धात्वर्थ का बोध नहि कराता परंतु उसके पूर्वग 'खा' 'सो' इत्यादिक से जो जो क्रियाएं सूचित होती है उन सब की पूर्णता को बताता है यह बात ख्याल में रहे । यदि 'खा' 'सो' इत्यादि पद 'खादित्वा' 'सुप्वा' की तरह संबंधक भूतकृदंत हो और 'गयो' पद 'गम्' धात्वर्थ का बोधक हो तो तो प्रस्तुत अखंड वा सखंड की चर्चा की आवश्यकत .