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धायो
_[१४७] विच्छित्ति विविध प्रकार का छेदन-विविध प्रकार का भाग-भिन्न भिन्न प्रकार । 'विच्छित्ति' अर्थवाले 'भक्ति' शब्द की निष्पत्ति “भंज्' धातु से है और सेवा अर्थवाला 'भक्ति ''शब्द, ‘भज' धातु से बना है यह ख्याल में रहे ।
३४. धायो-तृप्त हुआ।
स० 'ध्रात' से प्रा० धात-धाय । 'धाय' का प्रथमैकवचन 'धोयो' और सं० 'ध्रात' में अन्तःस्वरवृद्धि होकर 'वरात' हुआ। 'धरात' का प्रा० 'धराय' और उससे 'धरायो' होता है। अर्थात् 'धायो' और 'धरायो' दोनों का मूल 'ध्रात' शब्द में है। "धैं तृप्तौ" धातु भ्वादि गण में है। 'तृप्ति' का अर्थ प्रतीत है। 'धराएँ' (गुज०) और 'धराना' क्रियापद का मूल प्रस्तुत '|' धातु में है।
३५. भाया-भाइ-भैया।
सं० भ्राता-प्रा० भाया । प्रा० 'भाया' से 'भाउ' 'भैया' 'भाया' और 'भाई' इत्यादि अनेक रूप होते हैं।
३६. भाया-पसन्द आया ।
सं० 'भावितक' से प्रा० भाविअध। 'भाविअ का लुप्त होकर 'भाइअ। उससे उच्चारण त्वरा के कारण 'भाव और 'भाव' से 'भाया' ! 'भाव्यु' (गुज.) पद भी 'भावितक' का
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