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धर्मामृत
अन्य अधिक व्यापक लोक भाषा में अनेक स्थलों में अक्षरों का व्यत्यय होता हैं । वक्ता के त्वरा और अज्ञान, उक्त व्यत्यय के कारण प्रतीत होते हैं ।
'वाराणसी' का ' वाणारसी' | 'अचलपुर' का 'अलचपुर्' । आलान' का 'आनाल' | 'महाराष्ट्र' का 'मरहदु' | 'हूद' का 'द्रह' । 'हिंस' का 'सिंह' वगेरे । व्यत्यय के ओर अधिक प्रयोग देखने के लिए हेमचंद्र प्राकृत व्याकरण ८-२-११६ से १२४ सूत्र को देखो ।
३२ चवदह - चौदह
सं० चतुर्दश- चउदस - चउदह - चवदह | 'चवदह' में मूल 'चतु' का 'उ', 'व' में परिणत हो गया है । 'व' और 'उ' दोनों ओष्टस्थानाय है |
३३. भांति - प्रकार- विविधता
सं० भक्ति- प्रा० भत्ति-भंति-भांति-भांत-भात | 'पांच' शब्द में जिस प्रकार अनुस्वार का मृदु उच्चारण है उसी प्रकार प्रस्तुत 'भांत' में भी समजना चाहिए। आचार्य हेमचंद्रने 'भक्ति' के अर्थ इस प्रकार बताये हैं ।
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" भक्ति: सेवा-गौणवृत्त्योः भङ्गयां श्रद्धा-विभागयो: " ( अनेकार्थसंग्रह द्वितीयकांड श्रो० १७९) प्रस्तुत में उक्त अर्थों में गिनाया हुआ 'भङ्ग' अर्थ उपयुक्त है । भङ्गिविच्छित्ति ।