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धर्मामृत
१६. पछतावो-पश्चात्ताप-पस्ताना। . सं० पश्चात्+ताप-पश्चात्तापः प्रा. पच्छत्तावो । प्रस्तुत 'पच्छत्तावो' का मृदु उच्चारण 'पछतावो' होता है और उसका अतित्वरित उच्चारण 'पछतावो'-'पस्तावो'। 'पछतावो' में 'छ' के बाद का 'त्' दंत्य होने से 'त्' के पूर्व का तालव्य 'छ' भी वाग्व्यापार की प्रक्रिया के अनुसार दंत्य 'स' के रूप में परिणत हो गया है ! बलिष्ठ परवर्ण का योग होने पर पूर्व के दुर्बल वर्ण को परवर्ण की जातिमें आना पड़ता है ऐसा उच्चारणक्रिया का अदभुत महिमा व्याकरण शास्त्र में स्थल स्थल पर अंकित हुआ हैं : क:+तरति-कस्तरति । कास्टीकते कष्टीकते । कः+ चरति-कश्चरति इत्यादि । काठियावाड के कितनेक ग्रामीण लोक उच्चारण को अतिमृदु करने के लिए 'पत्तावी के स्थान में . 'पहटावी' भी बोलते हैं।
प्रस्तुत प्रथम भजन प्रातःकाल में गाने योग्य है। और विशेष गंभीरता के साथ मननीय भी है। भजन में 'अमृतवेला' शब्द से 'ब्राह्ममुहर्त' का सूचन किया गया है।
भजन २ रा १७ पांत-समान जाति वाले के साथ एक पंक्ति में बैठकर खानेकी योग्यता रखना।
सं० पङ्क्ति । प्रा० पति । 'पति' उपर से पांत ।