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धर्मामृत
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१०. निवारो-निवारण करो-रोको । सं० निवारयतु । प्रा० निवारउ-निवारो। ११. नींद-निद्रा-प्रमाद ।
सं० निद्रा । प्रा० निदा-नीद-ऊंघ । 'निंदा' अर्थवाला 'निन्दा' शब्द और प्रस्तुत 'नींद' शब्द में शाब्दिक और । आर्थिक दोनों प्रकार से जमीन आसमान का अन्तर है।
१२. काज-कार्य-काम-कर्तव्य ।
सं० कार्य । प्रा० कन्ज-काज | 'कज' शब्द से जो भाव धोतित होता है उसी भाव में गुजराती में 'कारज'* शब्द का भी प्रचार है। यह 'कारज' का मूल 'कन्ज' नहीं परन्तु सीधा 'कार्य' है : कार्य-कारय-कारज । 'सूर्य' शब्द से जिस तरह 'सूरज' बनता है उसी तरह 'कार्य' शब्द से 'कारज' शब्द
आता है । उच्चारण को मृदु करने के लिए 'य' के 'र' और 'य' के बीच में 'अ' बढ़ जाता है ऐसा प्राकृत भाषा का
* काठीयावाड में भावनगर के आसपास के प्रदेश में 'मृतभोजन' के लिए 'कारज' शब्द का व्यवहार है। कोई कालमें नामशेष स्वजनों के पीछे भोजन कराने की पद्धति अवश्य कर्तव्य जैसी होगी उसी कारण से वह पद्धति 'कारज' शब्द से संबोधित हुई होगी ऐसा अनुमान है । 'मृतभाजन' के अर्थ में 'कारज' शब्द का लाक्षणिक उपयोग है यह ख्याल में रहे।