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सुधारो
बंधारण है । इस तरह जहां जहां कोई भी स्वर जाता है उसको व्याकरणशास्त्र में 'अंतःस्वरवृद्धि' 'अंतःस्वरवृद्धि' माने बीच में स्वर का बढ़ जाना । 'कारज' की तरह और भी ऐसे अनेक शब्द हैं जिनके संयुक्ताक्षर के उच्चारण को मृदु बनाने के लिए उस संयुक्त के बीच में वाख्यापार सापेक्ष 'अ' 'इ' '३' भी लक्ष्यानुसार बढ जाते हैं : दर्शनदरिसण, पद्म-पदुम, इत्यादि । उक्त अंतः स्वग्वृद्धियुक्त प्रयोगों को समजने के लिए हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण - आठवां अध्याय, द्वितीय पाद सूत्र १०० से ११५ देखने चाहिए | १३. सुधारो - शुद्ध करो - अच्छा बनाओ ।
'सुधारो' शब्द में दो पद हैं : शुद्ध और कार । 'शुद्धकार' का अर्थ 'शोधना' - 'साफ करना' है । 'शुद्धकार' शब्द से संस्कृत क्रियापद 'शुद्धकारयति' का प्राकृत 'सुद्धकार' होता
| 'सुद्धकारइ' से अपभ्रष्ट होकर सुद्धआरई - सुद्धारइ हुआ । प्रस्तुत 'सुद्धार' में हिन्दी 'सुधारना' गुजराती 'सुधार' का मूल रहा हुआ है । अथवा गुजराती 'रमा' 'भमाडवु' 'जमाडवं' वगैरे क्रियावाचक शब्दों में प्रेरणादर्शक 'आड' (रम्-आड-अरमाडवुं ) प्रत्यय लगा हुआ है, उसी तरह सं० 'शुध' - प्रा० 'सुधः धातु को भी प्रेरणा सूचक 'आर' प्रत्यय लगाकर सुध्+आर्सुधा र् + अना - सुधारना क्रियापद बनाना अधिक उचित जान पड़ता
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अधिक बढ
कहते हैं ।
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