________________
विहानी
[१२९] छांदस में अनियत हो कर उक्तादन्यत्र भी हो जाता है और इसी नियम को लेकर 'विहाण' शब्द में 'त' का 'न' हुआ है, इस प्रकार 'विहाण' प्रयोग बाहुलिक होने से कोश ग्रंथों में अदृश्यसा होगया है फिर भी 'वि+मा+त' इस प्रकार उसका पृथकरण देखने से मान होता है कि किसी प्राचीन समय में 'विहाण' शब्द 'प्रभात' अर्थ में होना चाहिए। उक्त व्युत्पत्ति से 'विहाण' का 'प्रभात' अर्थ तो सुस्पष्ट है। 'विभा+ अन' ऐसा विभाग करने से भी विभान'-'विहाण' शब्द बन सकता है, परन्तु उक्त 'अन' प्रत्यय से भूतकाल का द्योतन नहीं हा सकता; इससे 'अन' प्रत्यय की अपेक्षा 'त' प्रत्यय. कर
और उसके 'त' का 'न' कर 'विहाण' बनाना उचिततर है। प्रस्तुत प्रभावार्थक 'विहाण' शब्द से हिन्दी का 'विहाना और गूजराती का 'विहाणवू क्रियापद नीकलता है। 'विहाणी' प्रयोग, उक्त क्रियापद के भूतकाल का रूप है । 'विहाना' और 'विहाणवू का अर्थ दीपना-प्रकाशना । 'रयन विहानी' का अर्थ रात्री प्रभातरूप हुई-प्रभात के रूप में परिणत हुई-उद्द्योत हुआ । गूजराती कोशों में "विहाणवू-गाळवं; गुजार" लिखकर 'विहाण' का जो अर्थ दिया है, वह उसका व्युत्पत्यर्थधातुमूलक अर्थ नहीं है मात्र उपचरित भावार्थ मात्र है, यह ख्याल में रहे।