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धर्मामृत
साम्य है ' अब तो यह निश्चित हुआ कि 'कुक्कुर' और
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" स्था' के बीच में आदेश - स्थानिका संबंध ही नहि बनता । हेमचंद्र ने अपने व्याकरण के आठवें अध्याय में धात्वादेशों के प्रकरण में जो जो आदेशों का विधान बताया है उनमें वाग्व्यापार सापेक्ष आदेश तो बहुत कम है परंतु अधिक भाग उक्त रीत्या अर्थ समानतावाला है । इस संबंध में सविस्तर विवेचन अन्य प्रसंग पर ठीक होगा ।
४. जागो - जाग्रत हो ।
सं० जागर्तु प्रा० जग्गड - जागर - जागो । 'जागना ' क्रिया का आज्ञार्थ व विध्यर्थ का रूप 'जागो' | गूजराती में जागवुं ' धातु है उसका भी प्रस्तुत के समान ' जागो' रूप होता है ।
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५. मनुवा - हे मानवो !
सं० मनुजाः प्रा० मनुआ - मनुवा ।
፡ मनुआ ' के अन्त्यस्वर 'आ' के पूर्व ओष्टस्थानीय 'उ' 'आने से उस 'उ' के बाद ओष्टस्थानीय अर्धस्वर ' व ' अधिक आ गया है । संस्कृत में भी इसी प्रकार का उच्चारण का नियम है : 'उ' वर्ण के बाद कोई विजातीय स्वर हो तो विद्यमान 'उ' के बाद ' व ' आ जाता है अथवा विद्यमान 'उ' के स्थान में ' व' हो जाता है- 'उ' ही 'व' में