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धर्मामृत
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राग कौशिया-तीन ताल निंदक बाबा बीर हमारा ।
बिन ही कौडी बहै बिचारा ॥
कोटि कर्म के कल्मष काटै।
काज संवारै बिन ही साटै ।। आपन डूबै और को तारै ।
ऐसा प्रीतम पार उतारै ।। जुग जुग जीवौ निंदक मोरा ।
रामदेव ! तुम करौ निहोरा || निंदक मेरा पर उपकारी ।
दाद निंदा करै हमारी ॥