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कबीर
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राग मालकंस -- झपताल
शूर संग्राम को देख भागे नहीं, देख भागै सोई शूर नाहीं ।
काम औ क्रोध मद लोभ से जूझना मँडा घमसान तहँ खेत माह ॥
शील औ सौच संतोष साही भये, नाम समसेर तहँ खूब वाजै ।
कहै कबीर कोई जूझिहै शूरमा कायरा भीड़ तहँ तुरत भाजै ॥
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