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राग पीलू - दीपचंदी
इस तन धन की कौन बढाई । देखत नैनों में मिट्टी मिलाई ॥ ध्रु० ॥
अपने खातर महल बनाया |
आपहि जा कर जंगल सोया ॥ १ ॥
हाड जले जैसे लकडी की मोली
धर्मामृत
बाल जले जैसी घास की पोली ॥ २ ॥
कहत कबीरा सुन मेरे गुनिया ।
आप मुवे पिछे डुब गई दुनिया ॥ ३ ॥
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