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धर्मामृत
राग गजल-पहाडी धुन समझ देख मन मीत पियारे आसिक होकर सोना क्या रे । रूखा सूखा गम का टुकडा फीका और सलोना क्या रे ॥ पाया हो तो दे ले प्यारे पाय पाय फिर खोना क्या रे। जिन आंखिन में नींद घनेरी तकिया और विछौना क्या रे ॥ कहे कबीर सुनो भाई साधो सीस दिया तब रोना क्या रे ॥