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यशोविजय
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राग देस-तीन ताल भजन बिनुं जीवित जेसे प्रेत, मलिन मंद मति डोलत घर घर,..
उदर भरन के हेत ॥ भ० १ !! दुर्मुख वचन बकत नित निंदा, सज्जन सकल दुःख देत । कब हुँ पाप को पावत पैसो, गाढे धुरिमें देत ।। भ० २।।
गुरु ब्रह्मन अचुत जन सज्जन, जात न कवण निवेत । सेवो नहीं प्रभु तेरी कब हु, भुवन नील को खेत ।। भ० ३ ॥
कथे नहीं गुन गीत सुजस प्रभु, साधन देव अनेत । रसना रस विगारो कहां लां, बुडत कुटुंब समेत ॥ भ० ४ !!