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________________ आचार्य श्री तुलसी ་ आचार्यश्री के दृष्टिकोणको हजारों हरिजनोंने अपनाया । मद्य, माँस, तम्बाकू आदि अनेकों कुत्र्यसन त्याग दिये | कई स्थिति - पालकों को यह बहुत अखरा । वे आचार्यश्रीको दलित जातिके बीच देखना पसन्द नहीं करते, किन्तु आचार्यश्रीने इसे अस्थान समझा । आप इसे बार-बार स्पष्ट करते रहे १३८ ―― “हमारा प्रवचन सबके लिए है । जो कोई सुनना चाहे उसे रोकनेका किसीको अधिकार नहीं है ।" आप यह भी स्पष्ट करते रहे : "हमारा जो कोई प्रयत्न होता है, वह सिर्फ अहिंसा और सदाचार की वृद्धि के लिए होता है । हमे कोई सामाजिक या राजनैतिक स्वार्थ नहीं साधना है । न हमे चुनाव लड़ना है और न मत एकत्र करने है । हम इन सब झंझटोंसे परे है । " आचार्यश्री के इस सफल प्रयोगसे लाखों लोगोंको मानवजातिकी एकताका भान होने लगा है, यह उनका सही मार्गकी ओर एक कदम है । "व्यक्ति-व्यक्ति में धर्म समाया, जाति-पातिका भेद मिटाया । निर्धन धनिक न अन्तर पाया, जिसने धारा जन्म सुधारा || अमर रहेगा धर्म हमारा ।" आपके इस पद्यकी धार्मिक कि भविष्यमे यह विशुद्ध धर्मका क्षेत्रोंमे बडी गूज है । आशा है व्याख्या मन्त्र होगा । -
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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