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आज जिसकी चर्चा है
आचार्य श्री तुलसी एक महान् धर्माचार्य है। सैद्धान्तिक दृष्टिसे भले ही हमलोग आपको जैनाचार्य कहें, व्यवहारकी भूमिकामे आप सिर्फ धर्माचार्यके रूपमे सामने आये हैं। धर्म का उन्नयन आपके जीवनकी महान् साधना है। अहिंसाके व्यापक प्रचारका अदम्य उत्साह आपकी रग-रगमे रक्तकी भाति संचारित होता रहता है। अणुवतीसंघकी स्थापना इसीका परिणाम समझिये। यह एक असाम्प्रदायिक धमसंस्था है, जिसका एकमात्र उद्देश्य है जीवन-निर्माण, चरित्र-विकास । धर्म-संकीर्ण विश्वके लिए यह एक सरल पथ है। इसकी आत्मा अहिंसा है किन्तु स्वरूप क्रान्तिकारी है और यह सही है कि इसी प्रवृत्तिके कारण यह सहसा लोगोंको अपनी ओर खींचनेमे सफल हुआ।