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________________ ૯ रहेला भक्तिविजयजी म०ना ज्ञानभंडारमां छे. १ विपयतावाद अने २ स्तोत्रावली - स्तोत्रत्रिक, आ वे ग्रंथो खंभात श्रीजैनशाळामांना श्रीनीति विजयजी महारानना ज्ञानभंडारमां छे. अप्टसहस्री पूना भांडारकर इन्स्टीट्युटमां छे. १ काव्यप्रकाशटीका टक अपूर्ण २ वादमाला, आदि ग्रंथो पूज्य सूरिसम्राट् श्रीविजयने मिसूरीश्वरजी म०ना संग्रहमां छे. मानविजयोपाध्याय कृत धर्मसंप्रहनी संशोधित अने परिवर्धित करेली प्रति पूज्यपाद आचार्य श्रीसिद्धिसूरीश्वरजी म०ना विद्याशाळाना ज्ञानभंडारमां छे. आ सिवाय तेमना हस्ताक्षरनी भ्रान्ति करता अनेक ग्रंथो जोवामां आव्या छे ते छतां जेने विपे चोक्कर खात्री नथी थई तेनां नामोने अहाँ जतां कर्या छे. उपर जणान्या प्रमाणे उपाध्यायश्रीना स्वरचित ग्रंथोनी स्वहस्तलिखित मूळ प्रतिभ - पहेला खरडाओ, जे आजे आपणा सामे विद्यमान छे, ए जोतां आपणने प्रतीति थाय छे के—तेमनी तलस्पर्शी विचारधाराभना प्रवाहो केटला अविच्छिन्न वेगथी वहेता हता ? साथै साथै तेमनुं प्रतिभापूर्ण पांडित्य, भाषा, विषय अने विचारो उपरनुं प्रभुत्व एटलां आश्चर्यजनक हतां के तेमनी कलम अटक्या विना दोडी जती आ खरडाओमां देखाय छे. आवे समये तेओ शाही कलम कागळ के लिपिना जाडा - पातळापणा आदिनो विचार करवा जराय थोभता नहोता. तेमनी रचनाओना आ खरडाओमां चेर - भूस पण घणी ओछी जोवामां आवे छे. परंतु स्याद्वादरहस्यना खरडामां विपयनी गंभीरताने लीधे के गमे ते कारणे घणीज चेर-भूस थई छे. आबा मूळ खरडाओने "परडो" "चीबू " ए नामोधी ओळखता हता. भापारहस्य ग्रंथनी प्रतिमां "भापारहस्यवीवृ" एम लखेलुं छे. वैराग्यकरपलतामां " वैराग्य कल्पलतापरडो " एम लखेलुं छे. विश्वनी विभूतिस्वरूप महापुरुपनी आधी स्वहस्तलिखित मूळ प्रतिओनो आटली विशाळ राशि, ए कोई एक व्यक्ति के प्रजानाज नहि, पण आखा विश्वना अलंकार समान छे. आ उपरांत उपाध्यायश्री पोता माटे काम पडे अन्यकृत ग्रंथोनी नकलो पण करी लेता हता. भंडारोमा आव केटीक प्रतिओ जोवामां पण आवी हे भावनगरना ज्ञानभंडारगां हरिभद्रसूरिकृत अष्टकनी प्रति तेओश्रीना हस्ताक्षरमां छे. पगथीआना उपाधयना ज्ञानभंडारमां विंशतिद्वात्रिंशिकानी प्रति श्रीनयविजयजी - श्रीयशोविजयजी गुरु शिष्ये मळीने लखी है. देवशाना पाडाना ज्ञानभंडारमांधी रुद्रनाथ वाचस्पति भट्टाचार्यकृत वादपरिच्छेदनो प्रति तेभोधीए जातेज खेली मन्त्री आवी छे. पं. श्रीमहेन्द्रविमलगणिना देवशाना पाडाना ज्ञानभंडारमांथी मळेली द्वादशारनयनक उपरनी श्री सिंहवादि गणि क्षमाश्रमण विरचित टीकानी प्रतिनी नकल तेमना तेमज तेमना साथीओना हाये लखायेली हे. आ प्रति तो जैनशासन अने वाङ्मयना शृंगाररूपज गणाय. आ प्रतिनो परिचय प्रस्तुत स्मृतिग्रंथमां जुदो छापयामां आग्यो हे. मा बधुं जोतां अने विनातां तेश्रो श्रीना अप्रमत्तभाव अने सततोद्योगिपणा मार्ट समर्थ योगिओने पण मान जागे तेवी बात है, व्यावासुनत जामन महापुरुषो पण पोताना जीवननो समग्र भावनाओंने क्या परिपूर्ण करीने विगांधी विदाय से एम चनतुं ज नथी, अने तेथी ज आजे तेमना प्रमेयमाला, कर्मप्रकृति भवति भाभीयन महाकाल्य ܕ
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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