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________________ अहि यो स्वानां चानां अधूरा न्ही गया दोवामां आवे है. संसारलां युगयुगान्दर क्यास्क व्यांकज आनी विशश्नानसंपन्न संचारी विनिओ जगनना प्रागीओन पुप्याशियों आवाईन अवतार . जनना अवतारी विश्व कृतकृत्य थड़ जाय है. अन ए विभूतियो विन कर्ववारसो अपंग ऋगल विनाय बाय है. जानमंडार उपाध्यायत्री महाराहनो एक जन्मंडार-पटक विशिष्ट पुलवानी संग्रह हतो. ए ञ्य स्थळे हनों नेनी नाहिली अपने मनी नथी, पग में बदर विशिष्ट हवी जेईए-पन्न शंका नथी. पुनो ए भंडार आज बीन्दगई गया है. पपा एक आर्यनी वान हैं के तन पानाना ग्रंथोनी पोचान ायनी नलो पण जुई जुई विलगपर्क, नोवानां आं है. ऋग वर्गक मानी माइग्मनीनां पथरावना न छह दबाना पानाना संग्रहनी योगविधिनानि आदि डा यो मळी अव्या है. आन केन ध्यु हो?- एक अगत्री समस्या ब है. आमततिमनो पुलकसंग्रहज्ञानमंडार हतो, ए आरगे देठाना पाडाना मंझरनं अलंकारद्वाननि, उनादिगनबिवरण आदि यौन अंतु ममता "संवन १७४५ वर्षे चैत्र शुदि५ श्रीयनोविजयगणिचित्को इयं प्रतिः पं० श्रीमानविजयगणिना निजगुल्णां विक्रांदो मुक्ता पुण्यार्यम् ॥ " इत्यादि रखो द्वारा निछिन गत जानी रानीए ठार गुरु-शिष्य, वात्सल्य अने पनि नहोपाध्याय श्रदयविदयनी महागन झन श्रमशक्जियत्री महाराज-का गुनशियनी जोडी, अन्दमावनु पक्र शुद्ध प्रनंकन . श्रीन्यविजयी महाराज पेठाना प्रानप्रिय अतियोग्य बळशयन युवती न सदा पाव्या है. दीवाना बनायी आमी नौवनमन ओए, तमनीविता की है अंने मुकार आयो है. मगात्राथी छईन याचनान ऋर्य मुद्रांनां तमंग श्रीयशोविजयी महागाजने वात्सत्यमयों साथ आया है. पानाना शिष्य अन्यास ऋगवानं तश्रीए ऋर्शन प्रबास मुड्या हती, अन माय नही दरक महायता की हती. श्रीयशानियांशध्याय ने यो च तनी किशष्ट शुद्र नत्रलं. पण टओ बात करना हवा. द्वादशानिय, सिदना द्वानितिना विगंग यानी शुद्ध प्रानगिक नको रवानां पन तमनी सहाय हुनी. बैंगन्यऋपटना, नयाहत्य, प्रतिमाशक आदि ग्रंथांनी ओर खेली नत्र आई पण जोवा म है. श्रीयशोविजयी महागनन अध्ययन आदिनां उपयोगी ढगाव ग्रंथोनी तमग नोकरी हनी. सामुदायिक नियम प्रसंगनं पर कोयी पोताना विपना मुहकार अंनं वामन्यथी डग्या नथी. आवा गुणमंडार परम्गुरु प्रत्य यशोविनयनी मनी मति पन अर्व अंने अखंड हवी अंने तथा द प्रसंग प्रसंग नगना बनायो "अन्डा मचन्दवनयविनाहिमजन अंने " गुल्ना गुन गाइ शकुंकन गावान गहनहिना. इमट्टी" अदि बास्यों न पडणं है. आवी गुरु-शियनं ही अंदरम
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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