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वस्तु छे. आटली वात संस्कृत-प्राकृत ग्रंथो विपे थई. गूजराती भाषामां पण द्रव्यगुणपर्यायरास, सन्याबचतुष्पदी-पन्यानकरास, जंबूस्वामिरास, श्रीपालास नेवी मार्टी कृतिओ अने वीजी मध्यम अने लघुशात्रीय, आध्यात्मिक अने भक्तिरस विषयक रचनाओं तमणधणी घणी करीछे केटलीक संस्कृतप्राकृत-गूजराती कृतिशे उपर वालावबोधो - गूजराती अनुवादो पण रच्या छे. ए रचनाओ बोतां आपणुं लक्ष्य एक बात तरफ खास जायके म तओटीए दार्शनिक आदि विषयोने संस्कृतप्राकृत भाषामां आलेल्या छे तेज रीते तेमणे संस्कृत-प्राकृत भाषाथी अपरिचित तत्त्वज्ञानरसिक महानुभावोनी जिज्ञासा पूर्वा ए विषयोने गूजराती भाषामां पण जताय.दार्शनिक, तात्विक, चार्षिक आदि गंभीर विषयोंने लोकभोग्य माषामांऊतारवा माटनी विरलजनमुलम कुशलता उपाध्यायश्रीमां केवी हती! अने तेओश्री पोताना वक्तव्यन परिमित शब्दोमां गद्य के कवितामां केवी रीते आलेखी शकता हता! तेनुं भान आपणने तेमनी द्रव्यगुणपर्यायरास वालावरोध सहित, सम्यक्त्वचतुष्पदिका बालावबोध सहित, श्रीपालरास चतुर्थखंड, विचारविद्ध, तत्त्वार्थ बालावबोध, ज्ञानसार बालावबोध, अध्यात्ममतपरीक्षा बालावबोध आदि कृतिओ द्वारा थाय . आने तेओश्रीनी आवी भाषाबद्ध नानी-मोटी रचनाओ एकंदर पचास उपरांत प्राप्त थाय छे. तेमना ग्रंथराशिनी संपूर्ण यादी स्मृतिथना संपादक विद्वान मुनिवर आ ग्रंथने अंत आपी है. उपाध्यायजीनी स्वहस्त लिखित प्रतियो
उपाध्यायनी महाराजे जे ने ग्रंथो रच्या हता, ते वधायनी नहि, तो पण नॉवपात्र गणी शकाय एटली तमणे रचेला ग्रंथोनी निश्चितरूप मानी शकाय तवी स्वहस्तलिखित प्रथमादर्शरूप प्रतिओ आने आपणा ज्ञानमंडारोमा नोवामळे .-१ अस्पृशदतिवादनुं प्रथम पत्र २ आषीय महाकाव्य अपूर्ण ३ तिङन्वयोक्ति अपूर्ण ४ निशामुक्तिप्रकरण ५ विजयप्रभरिक्षामणक विज्ञप्तिपत्र ६ सिद्धान्तमंजरी शब्दरखंड टीका अपूर्ण ७ जंबूस्वामिरास, आ सात प्रतिओ मारा पोताना संग्रहमा छे.१ आराधकविरावकचतुमैगी वोपन टीकासह पाटण तपागञ्चना भंडारमा हे. १ अध्यात्मसार २ प्रमेयमाला अपूर्ण ३ द्रव्यगुणपर्यायरास बालावबोध, १ धर्मपरीक्षा स्वोपन टीकामा उमेरण, आ चार अंयो अमदावाद पगीआना-संवेगीउमाश्रयना ज्ञानमंडारमा २.१ आमल्याति २ गुरुतत्त्वविनिश्चय ग्रंथनो अंतिममाग ३ नयरहस्य ? भाषारहत्य ५ वादमाला ६ चादमाला अपूर्ण ७ स्याहादरहत्य ८ मार्गपरिशुद्रि, ९ वैराग्यकपलता १० योगबिन्दुअवचूरि ११ योगदृष्टिसमुच्चयअवचूरि अपूर्ण १२ स्याद्वादरहस्य (बृहद् ) अपूर्ण. आ बार प्रतिओ अमदावाद देवशाना पाडाना ज्ञानमंडारमांडे. १ तत्वार्थवृत्ति २ वैराग्यरति किंचिदपूर्ण ३ स्तोत्रत्रिक १ स्पादादिसिद्धिप्रकरणटीका त्रूटक अपूर्ण, आ चार ग्रंथो अमदावाद हेलाना ज्ञानमंडारमा हैं. आ उपरांत भारी धारणा प्रमाणे डलाना मंहारमा १ उपदेशरहस्य २ कर्मप्रकृतिवृत्ति ३ वीरस्तुति न्यायखंडखाध स्वीपज्ञ वृत्तिसह आदि ग्रंथो पण उपाध्यायजी महाराजना स्वहन्तलिखितज होना बोइए. न्यायालोकनी प्रति मुरत जैनानंदपुस्तकालयमा है. योगविशिकावृत्तिनी प्रति भावनगर श्रीआत्मानंद जैन समामां