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________________ १३४ भी १०० में अधिक ग्रन्थंकि रचयिता हैं । विशिष्टादनके श्रीकवि, तार्किक कसरी बंकटाचार्य मा अनेक दार्शनिक प्रबन्धी और अनेक महाकाव्यंकि रचयिता है। इस प्रकाग्मं श्रीयशोविजयनीन भी ३०० में अधिक ग्रन्थ लिय हैं । सिर्फ संस्कृत में ही नहीं, प्राकृन, हिन्दी, मारवाडी, और गुजरानी मापामें भी अनेक ग्रन्थीकी रचना की। ऐसी पुण्य विभूनिन यदि युगप देशमें जन्म लिया होना ना उस महामाका घर, घर पर पूजन होता, और उन्हीक माहित्यक प्रकाशन और प्रचारक लिए पग पुरा प्रयत्न करते तो भारत, गुजरान और माग्नक जैन समाज ऐसी महान विभूनिके लिए, उप साहित्यके लिए, कदम उठाने में क्या प्रारम्य करेगा। यह दुख की बात है कि अठारहवीं सदीमें होने पर भी उनक अनेक ग्रन्थ मिलने नहीं। हम छोगांकी अमायबाना आदिक कारण उनके अनेक ग्रन्थ दुर्लभ हो गये। यदि आप लोग उनके प्रन्या के प्रकाशन और पठन पाठनक लिय सुत्र्यवस्थिन प्रयत्न करेंगे तो उसम जैन समाजका ही नहीं, समम्न भारतीयाका महान उपकार होगा।xx [अपूर्ण ] * - - - - - - ગુરુ આશાનના વિષે જ नूनमन्लप श्रुतस्यापि गुराचारणालिनः । हीलना भस्मसात् कर्याद्गुणं अग्निग्वेिन्यनम् ||२|| शक्त्यम ज्वलनच्यामिहोयातिशायिनि । अनन्तदुबजननी फ्रीनिता गुरुहीलना III प्रन्या मद्रका शान्ती बिनीता मृदुस्तमः । मुझे मिथ्यागप्युक्तः परमानन्दमागतः ॥ gulfANASI निशि अग्रन्या प्राचीनाः परिचयमिता: पदतिवनम, नाना तफांली हदि बिदितमेतत् फयिक । अम्री जैनः काशीविषविजयप्राप्तयिनदी, मुद्रा अच्छत्यच्छा समय-नयमीमांसित पाम् । शानिय] [न्यायwelama 9. - D -
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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