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विद्वानोंमें कोई इस प्रकारका नहीं हुआ कि जिसने नव्यतर्कको शैलीका आश्रय लेकर अपने मतका निरूपण किया हो।
परन्तु अठारहवीं सदीमें 'न्यायविशारद' 'न्यायाचार्य' उपाध्याय यशोविजयजी इस प्रकारके विद्वान् हुए; जिन्होंने नव्यतर्कका आश्रय लेकर जैनतत्त्वो-सिद्धान्तोंकी प्रामाणिकता प्रतिष्ठित कर दी।
आचार्य हरिभद्रसूरिजी आदि प्रकाण्ड विद्वानोंने जिस तर्कका-हेतुओंका आश्रय लिया था; उसके साथ नये हेतुओंका आविष्कार करके उन्होंने अनेकान्तवादकी पुष्टि की थी। उसके दो चार उदाहरण लीजिये।
अनेकान्तवादके अनुसार प्रत्येक वस्तु अपने द्रव्य-क्षेत्र-काल-मावकी अपेक्षासे सत् है। और पर द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावकी अपेक्षासे असत् है । इस दो प्रकारकी प्रतीतिके कारण आचार्य हरिभद्रसूरिनी आदिने वस्तुको सत् और असत् वताया । यशोविजयजी उपाध्याय कहते हैं कि भाव पदार्थ अभावके अभाव रवरूप है; इसलिये सत् और असत् रूप है । साधारण रूपसे घट आदिका भावरूप (विना?) अपेक्षा से प्रतीत नहीं होता । पर यदि उस भावको अपने अभावके अभावरूपसे निरूपण करे तो उसका ज्ञान भी बिना अपेक्षासे नहीं हो सकता । अभावका ज्ञान यद्यपि सदा अपेक्षासे होता है, पर जब प्रमेय आदि रूपसे किया जाय तो उसमें प्रतियोगी आदिकी अपेक्षा नहीं होती।
इसी प्रकार यशोविजयजी महाराजने चित्ररूपके दृष्टान्तसे भी पदार्थोंको एकाकार और अनेकाकार सिद्ध किया है । जव किसी वस्तुमें नानारूप प्रतीत होते हैं । तव चित्ररूपकी दृष्टिसे वह रूप एक प्रतीत होता है । पर शुक्ल, पीत आदिकी दृष्टिसे वही अनेक प्रतीत होता है। चित्ररूप के समान प्रत्येक द्रव्य एक भी है अनेक भी है।
"श्री महावीरस्तव "की व्याख्या-न्यायखण्डखाघमें श्री यशोविजयजी कहते हैं कि दीधितिकार रघुनाथ शिरोमणि भट्टाचार्यके अनुयायी तार्किक एक द्रव्य में संयोगी के भेदको अव्याप्यवृत्ति मानते हैं । जव अन्य स्थलोंमें भेद व्याप्यवृत्ति होते हुमे भी संयोगी द्रव्यमें अव्याप्यवृत्ति हो जाता है । तब सत्व और असत्त्व भी एक वस्तुमें अपेक्षाके भेदसे विना विरोधसे रह सकते हैं।
इस प्रकारके अनेक हेतु हैं । जिनका श्री यशोविजयजी महागजने अपने ग्रन्थोंमें पहला ही आविष्कार किया है। .
महात्मा श्री यशोविजयका पाण्डित्य वड़ा व्यापक था। उन्होंने अनेक ग्रन्थ लिखे, जो अनेक विषयों पर हैं । अनेक विषयों पर विस्तृत गंभीर ग्रन्थोंकी रचना करने वाले विद्वान अन्यमतों में भी इने गिने ही हुआ हैं । अद्वैतमतमें माधवाचार्य १५० से अधिक ग्रन्थोंके लेखक हैं। व्याकरण, मीमांसा, वेदान्त आदिके विषयोंमें इनके प्रन्थ पाये जाते हैं। अद्वैत मतके विद्वान श्रीअप्ययदीक्षित .