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શ્રીયોવિથ સાસ્વતસઘના પ્રમુખ, તર્ક, ન્યાય, સીમાંસાન દાનિક પતિ શ્રીઈશ્વરચંદ્રજીનું પ્રવચન
વિદ્ર, અનેક ભાવિક થઇશ્વરથમ પ્રમુખસ્થાનથી વિનાયું અને પ્રાળુવાન પ્રન કર્યું” હતું. તે પ્રશ્નને હગ થતાછે સંયુક્ત બનીને આવ્યું હતું, અને તે જરિ પ્રથા પામ્યું હતું. તે ભાણની પ્રાપ્ય નોંધ અન્ન રશ્ કરવામાં આવી છે. સંપૂર્ણ વક્તવ્ય તું ન કરી શકા ાસ નિફ भूपा ]
भाव बहुत च
नाना ठीक जीवके कन्यागके लिये विचार करते रहे हैं। इसके लिये लोगनि जोवका संगारकं साथ क्या है इसकी गंभीर परीक्षा की। इस परीक्षाक footeras for प्रथा दो विभाग हो गये । एक और ये लोग थे, जो बेदको प्रमाण मानने थे, दूसरी ओर वे थे, जिनके लिये वेद प्रमाणभूत नहीं था । दर्शनशास्रके गंभीर विचार बाद में प्रगट हुए। पहले पहल जीवन श्राचार-व्यवहार कर मनमेद हुआ। जो लोग वैदिक इस प्रकार भी थे जो यक्ष पाहाकी धर्म मानने थे । उनकी की विचार अनुसार स्वर्गकी प्राप्ति होती थी । प्रमाण मानकर मित्र विन दोग जन्मके कारण की व्यवस्थाको कुलमें उपन्न हुआ हो; और उसके गुण-गोचिन न हो, उसको शावका ज्ञान न हो, और वह मिथ्याभागादपि दुषित भी होती थी वे लोग कुल उत्पन्न होने का पुजनीय मानने थे |
मिं भिन्न भिन्न
हिंसा पापरूप नहीं थी । यज्ञपशु " श्रग्नियोमियं पशुमान्येन" इत्यादि वेदवाक्यको पशु वध होता था। इसके अतिरिक इम का स्वीकार करते थे | यदि कोई
उसको
वैदिक लोग श्रह्मण होगी प्रधानता थी .
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दूसरी और कुछ स्वतंत्र विचारके लोग थे। जिनका वैदिक लोग इन दो सिद्धान्तों पर प्रधान विरोध था । यद्यपि प्राचीन कामें इस प्रकार वैदिक लोग भी थे, जो य
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रुद्र मानने थे | और वो जन्मनिमिन न मानक गुग-कर्म निमित्त स्वीकृत कर थे । परंतु इसके लोग उस समय अन्य संख्या में हो गये थे । इस वैदिक नाम "यक्ष पशुवध " और "जन्मकथा" इन दो
की किया जाना था। इसी काउ
स्वर्गी
किसान इस प्रकारके लोग भी थे जिन्होंने कहा कि हैं पर ही पात्र होना है उसका दुःख भोगना पड़ता है | ये विचार माझ्व्यमनके अनुयायी थे | म और स क दुःखका कारण माना गया है। पूर्वमीम प्रथा और कुमार यह आदि आचार्योक मनानुसार यज्ञ की दिया था है। उसमें भी नहीं। इनका प्रकार गंभीर विचार