SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 434
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૧૨૯ होने लगे बाद में जब संसारके मूल कर्मों पर विचार होने लगा तब वेदवादी लोग आत्माको और कुछ अन्य पदार्थोंको नित्य कहने लगे। पर जो वेदको नहीं मानते थे; उन्होंने मूल कारणको सर्वथा नित्य नहीं माना। भगवान बुद्ध; जिन्होंने सब पदार्थोंको क्षणिक और अनात्मक कहा | भगवान महावीरने वस्तुमात्रको उत्पाद-यय और धौव्यसे युक्त बतलाया। इन वचनों पर बादमें होने वाले बौद्ध और जैन तार्किकांने क्षणभंगवाद और अनेकान्तवाद - स्यादवादको दार्शनिक रूपमें प्रतिष्ठा की इन वादों को समझने के लिये एक सरल दृष्टान्त देना उचित समझता है। एक वस्तुको देखने पर साधारण लोगों की और विचारकों की बुद्धिमें बहुत बड़ा अंतर होता है । (जेब मेंसे रुमाल निकालकर) मेरे पास यह रुमाल है | यदि यह पूछा जाय कि इस रुमाल के कारण कौन हैं और उनका इस रुमाल के साथ क्या संबंध है ! तो साधारण लोगों की अपेक्षा विचारकों के उत्तर बहुत भिन्न होंगे । साधारण लोग स्थूल दृष्टिसे देखते हैं और स्थूल वस्तु प्रायः सबको समान दिखाई देती है। मा वे है या पोल है या लाल है ? इस विषय में तो किसीका मतभेद नहीं हो सकता | यदि होगा तो श्वेत कहेंगे, पीला होगा तो पीटा कहेंगे । परंतु यदि पूछा जाय कि यह रुमाल सुन्दर है या नहीं ? तो सबका उत्तर एक समान नहीं होगा । कुछ कहेंगे, 'सुन्दर है,' कुछ करेंगे, सुन्दर नहीं है' और कुछ कहेंगे 'मुन्दरता है सही परंतु कुछ अप परिमाण में ।' श्वेत और पीन रूपके समान सुन्दरता सर्वथा आँखोसें नहीं दिखाई देती । उसका संबंध मनके साथ भी है। मन सबका समान नहीं होता । इसलिये एक ही वस्तु में सौन्दर्यको बुद्धि भिन्न हो जाती है । जो वग्नु बा इन्द्रियों से अनुभव में न आये, जिस पर मनके द्वारा विचार करना पट्टे, उसके दियो जाना स्वाभाविक है | रुमाल कार्यकारण भावका विवार इस प्रकारका है, साधारण लोग इसको उदा मन बैठे हैं. वे तो यह कहने लगते हैं कि समान्य तन्तु रहते हैं, परंतु यह विना दार्शनिकसंगत नहीं है । तन्तु कारण हैं । पँट कार्य है । कारण विना कार्य नहीं कह सकता । कारण कार्य बिना रहता है | तन्तु दुकान पर पड़े रहते हैं उन समय न माल होता है, न धोनी होनी है,न कुरता होता है | जब रुमाल या धोती बनती है, तब माया धोनी बिना तलुओं नहीं दिखाई देती । 'तन्तु पटके साथ होते हैं इस विषय में न्याय, वैशेषिक, सांख्य, पूर्वमांगा प जिनका कोई मतभेद नहीं | परंतु प्रश्न हुआ कि तन्तु और पट परम्पर मित्र है या अमीन भिन्न हो गये । गौतमीय व्यायको माननेवाली - तन्तु और पहले नहीं होता । तन्नु पर ૧૭ ::
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy