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________________ ४० एओथो वान नरयां मार्गे पद्म उपान्ये एओ हूं एकान्ती थी एक आगळ मारो पक्ष न निमन्यै | नइयें लोक मुण्डावाड़ी हिस्य ने कर देखने का ते सूकी ने को बोर्ड मार्ग जाय ते आयी मिज नहीं । सामा याचना जोड़ने तत्रवृद्धि, जिनकी परणिन है, नकल सूत्र की ऊंची। जग जस वाद व उन्ही को जैन इसा 'जस' ऊंची ॥ प. ॥ जै० ||१०|| विशुद्ध नलिन पासवानी बुद्धि नाम नति में सब दिन बनी रह्यो है थी निरर्थक चाव नंदा की निन मामी दृट हो न दें। है नाम बुद्धि ने एक के नाम कैर्णे कहां लेनी हाम्रागे हां न है कोईन कि नो वान वे तो न हो न है । मात्र योनी अनुया बात तो हा ना न कहै । विका 1 देने से कवितां श्री की जाय। पोनानी संघा वा प्रसा की निहां वर्ष; विषाद मन में ही न या । पानी बुद्धि पानी ने ही यह है प है स म नाम परमानि सूत्र आगमको नाम नेको सर्वेनी ऊंची है। पनडे सर्व सूत्र रूप नाडा खेय्वाने हुंची प्राय है नान सर्वे सूत्रों को ए ग्हम्य हैदिर्गे जिन भानि सूत्रहत्य पान्यो।पनकै जैननूं न्हस्य - श्रम दिन म ब नाम कमायो नि पुरायो उपगट है तो आज तन्त्र गणना की उन्ही को नामों का नाम पाना रूप जगन ने दिये त्रयवाद त्र्यन व फलै । कोई जग नै वितेन वादक निहां - जैन इसा नाम जैन धर्मनी मात्रय उपाध्याय कहे है नेटने जैन दर्शन ਭਾਗ ਤੀਜੀ ਗਧ ਦਸਤੁਝ ਤੇ ਸ਼ੈਲੀ ਵਧ ਤਰਗਤ ਥਕੇ ॥ ਕਹੁ ਰੰਗ ਗ ਗੰਭੀ ਵਧ ਗਜ ਕੇ मध्यप्रानी ने जैन दर्शनीनाम नै दिनसवाद नौ नाम ! हो । ॥ इति तत्वार्थ गंतम् ॥ 5 વધું પર્વ તે દુબ લક્ષ્ય, નિયા ને ચુખ દુિએ એ દૃઉં” આતમનુí પ્રા, ક સુખ તે નાગર સુખ પામર નિત્ર જનતુ, વલ્લભ મુખ ન કુમારી; અનુભવ વિષ્ણુ નિમ ધ્યાનત્રણ સુખ, ગુણ જાદુ નરનારીક સ હુએ ? ભ दृष्टि या 1 [ = विजय
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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