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संजोग सिद्धी अफलं धयंती, नहु पगचक्कण रहों पयाई ।
अंधोय पंगूय वणे समेञ्चा, तेनं पउत्ता नगरे पविठ्ठा ॥२॥ तेथी क्रिया विना नाम क्रिया नै अभावै ज्ञान नौ अभाव नै ज्ञान ने अभावै क्रिया नौ अभाव यथाआनंदघनमुन्युक्ति:
शान धरौ करौ संजम किरिया न फिरावौ मन घाम । .
चिदानंद धन सुजस विलासी प्रगटै आतमराम ॥२॥
तेथी ज्ञान क्रिया नी जोड़ी छै । ते कारणै क्रिया नै ज्ञान ए दो, नाम क्रिया प्रवर्तनरूपा ज्ञान विशेष विचारणरूप यथा ज्ञान लक्षणं-"विशेषावकोधो ज्ञानं " तेथी ज सूत्री मां एहवू कथन छै-" पढमं नाणं तओ पवत्ति"-ए कारण श्री प्रथम जाणपणू पछै प्रवर्ति नाम किया तेथी एउनी संजोग सिद्धता छ । एजें लिखत घणुं छै पानी छोटौ केतलो एक लिखू। एतला में सर्व समझ लेज्यो। क्रियाज्ञान केहवा एक मिलो रह्या छै । जिम जल पाणी नौ रस स्वाद पाणीमा रह्यो छै। तिम क्रिया प्रवचनरूप ज्ञान जाणपणां में रह्यौ छै । प्रथम जाणीजै पछी प्रवर्त्तन थाय ते विना न थाय । ज्ञान जाणवारूप । ते जाणता छतां प्रवतिय नहीं तइये जाणपणो निष्फल भयो । कथं ! "फल शून्यत्वात्" तेथी जल दृष्टान्ते बेई मिल्या रहै छै परं आत्म तत्त्व गवेपी नै किस सम्मिलत रहै छै।
क्रिया मगनता वाहिर दीसै, ज्ञान भगत जस भाजै।।
सदगुरु सीख सुनै नहि कबहू, सो जन जन सूं लाजै ॥ प० । जै० ॥९॥ · नै जे आत्मार्थी नथी आत्म स्वरूप ग्रहणार्थी नथी । ते नै तो क्रिया मगनता नाम किया प्रवर्तवानी मगनता । तदाकारी पy नाम एकंत दिनरात्रे क्रिया प्रवर्तवानी बाह्य लौकिक नै विसै आपरी उन्नता दिखाववाने कारणै दोस नाम एतो प्रत्यक्ष दीस छ किम क्रियानी मगनता विना ज्ञाननी भक्ति हुवै नै एकत किया वादी हुवै । जस नाम जेहनै न हुवै एतलै ज्ञाननी भक्ति थी माजै नाम वेगलौ रहै । वा ज्ञान जे आत्मस्वरूप तेनौ ज्ञानी हुवै तेनी भक्ति बहुमानता करवाथी जस जेनौ मत भाजै नाम वेगलौ रहै एतलै आप क्रियारुचि छै। तेथी क्रियावान थी तो पोतानौ मन हीसै नै ज्ञानवाननी भक्ति कोई करै तेहनै देखी तेनौ मन भाजै वेगलौ रहै नाम तेथी मत न मिले। फिरी ज्ञानवान नौ कोई जस गावै तेथी पिण तेहनौ मन भाजै वेगलौ रहै नाम ज्ञानी नौ जस नहुँ होवे । फिरी सदगुरु नाम शुद्धोपदेष्टा नाम शुद्धस्यावाद कथन थी उपदेष्टा-उपदेशना दाता एहवा गुरो ना उपदेश परम शिक्षारूप तिहां कोई कहिसी तैं परम सीख रूप किम का । तिहां लिखें जे शुद्धोपढेष्टा गुरु हुसी ते ज्ञानाक्रिया वे थीन सिद्धनी सिद्धता कहिसी । किम परमेश्वरे एकतवादी नै मिथ्यामती का नै तेहवा गुरु सिद्धान्तानुलाई न उपदेश देस्यै । ते एकांत पक्षी तेथी तेओ नो उपदेशक बहु कहे न सुणै । तेथी नाम तेओना उपदेश न सुणवाथी सो नाम एकांत पक्षी । जन जनसुं नाम स्याद्वाद मतधारी मात्र पुरसासु लाजै । नाम अनेकान्तवादी नै देख्यां लज्या पामै । किम