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aप करतौ छतौ शुद्ध निर्मल कर्म रज रहित निजरूप पोतानौ अछेध, अमेध, अनंतज्ञान अनंत दर्शनमयी आत्म स्वरूप नै जोवै नाम स्वरूपे प्रत्यक्ष करै, नाम साक्षात्कार करै, एतले स्वरूप प्रकट करै ।
स्याद्वाद पूरण जो जाणै, नय गर्भित जस वाचा ।
गुण परजाय द्रव्य जो बुझ, सोई जैन है साचा ॥ प० । जै० ||३||
फिरी ते आत्मा केहवो थयौ स्याद्वाद नाम स्यात् पुरस्सर नाम कथंचित् वाद कथनै सहित जैन दर्शन नै जो जाणै जिको ओळखै । एतले स्यादस्ति, स्याद्नास्ति स्यादस्तिनास्ति इत्यादि ना सर्व गर्भित रहस्य नै जाणै । वलि ते आत्मा केहवो एक थयो है ? स्यादस्ति प्रमुख सप्त भंगी नै 1 जाणवै करी नै जस वाचा जेहनी वाणी बोलवो एहवो थई गयो छे । एतलै कोई तेह थी पक्ष सम्बन्धी बात करयां छतां तेह नै पाछौ प्रत्योत्तर सप्त नयै गर्मित सहित हीन दै वितण्डावादी न हुवै। एवो थयौ छतौ द्रव्य शब्दै धर्मास्तिकायादि छए द्रव्य नै भिन्न भिन्न लक्षणें करी बूझे समझे । तिम ज द्रव्यं द्रव्य दीठ गुण रह्या छे, तिमज पर्याय रह्या छै ते सर्व नै जो बूझे, जो समझै । एनै 1 एतला में समझी लेज्यो केतलो एक लिखूं पानौ छोटौ । सोई नाम तेहीज जैन नाम जैन दर्शन साचा नाम साचौ सत्य है । अनंत केवलज्ञान केवल दर्शनिये भाख्यौ ते ए छै नै आगामी काले पिण केवली एक मात्रा होनाधिक न उपदिससी । स्यात् कथनै रहित नैगम संग्रहादि सात नयै रहित, द्रव्य गुण पर्यायें रहित अनंता तीर्थकर केवली न उपदिससी ।
किरिया मूढमती जे अज्ञानी, चालै चाल अपूठी ।
जैन दशा उन मांहें नांही, कहै सो सब ही झूठी || १० | जै० ||४||
किरियानाम रुकंत किरियावादी, मूढमती मूरख बुद्धि, अतएव एथीन ते अज्ञानी
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किम जिन दर्शन नूं रहस्य अणजाणता वा मुग्ध लोकोनै वंचवा कारण बाह्य क्रर क्रिया दिखावै । ते क्रिया रूप जाल में भोळा प्राणी रूप मृग आवी फँसै । पछी तेओना दृष्टिरांगी थया छता । कहै ते साचूं जैन दर्शन संबंधित जाणी नै । तेओ कहै तिम धर्मरुची थका प्रवत्तैं । तेओ देव नै कुदेव कही बतावै । कुधर्म जैन थी विरुद्ध नै जैन शुद्ध कही बतावें । आप थी अन्य नै कुगुरु कुपात्र कही बतावै | भाप थी अन्य जै दिक्षावान् नै लिंगिया कही बतावै । परं परमेश्वरो नो तौ पारणामिक धर्म छे तेनै- 'विवहार नयच्छेए तित्थच्छेओ जओ भणिओ ' - एहवौ कहीने रुकंत कियाजाळ में फसावी दै | नें परनेश्वरे एहवूं कहूं - ' एगंते होई मिच्छतं ' । तेथी अपूठी उलटी चाल पोतें चालै अन्य नै चलावै । जैन दशा नाम जैन दर्शनमां उक्त-कही साधु नी दशा-मुद्रा दीसती दीसै तौ पिण उन मांहे नाम तेहवी मुद्रा धारियो में नाहीं नहीं । एतले ते बग पंखी नी वृत्ति मुद्रा देखी नै भरमस्यौ नहीं । ते मुद्रा हारलपंखी नी लकड़ी परेँ जाणग्यो । यथा निम हारलपंखी एक पगै वृक्षनी डाळी पकड़ बैसै । बीजो पग चुंचकाने राखै, चूंच में लकड़ी राखे तेथी तेने