SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 331
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपाध्याय श्रीमग्रोविजय गुंफिन श्रीमद् बानमारगणिछन बालावाघ युक्तम् श्री तत्वार्थ गीतम [ग-अन्त गुदमन्दार, मिश्रित ) जैन ऋही कथु होपरमगुरु, जगनगुम. जे० गुरु उपदेश विना जग मृहा, दरमण जैन विगोत्र ॥ प० । जे० ॥२॥ हा नवन में दाय नी बनलावण छ । श्रद्धावान शुद्र जैन दर्शन नै ओळवांछते शिष्य नो प्रश्न छ । यो परमगुरु ! मां जगद्गुन । तिहां गुरु शब्द नलग-युष्योपदेयांग गुरवः शुद्र सिटानानु बाई बैन दान ना उपदया-अदा दाना नेने गुरु ऋहीने में आचार्य ने परमश्वासो गुरुच परमगुरु | अकृष्ट गुरु प्रग्नेचर परनामा कडझान दर्शनी श्री पुछे ठे-अहोनी स्वामी जैन क्यूँ हो । नाम लेन दर्शन या मिट्ट यु . हुवै ? गुरु अदा बिना नाम गुना अंश नै अमात्र जन मूढा मुगध मोला प्राणी जैन दर्शन ने विगह ग्या है, वैन दर्शन में निन्दा ऋात्री रा छ । परं गुरु कहता एक निरमायी, निरमदी, निर्मात्री निर्गन हटदादी, नगेन अपल ऋञ्चित प्रबन्धी, शुद्र, नस्वीपष्टी, स्यान्सर वचना, पहबा सुगंना अंश बिना गंमारदायी ने जैन दर्शन में नुच्छ बुष्टिं मृढ क्रियावादी, जिनपत्रारी प्रानी। जैन दर्शन नमर्ग अपवाहनयों नौ म्हस्य अशजागा बिन्द्र भाषण आटा बैन ने बिगाई रया है। ऋडित कृपानिधि मु(मोनल श्रीर, ऋम्र मेल ने घोत्र । बहर पाप मल अंग न यार, शुद्धम्प निज जोत्र ॥ १० ज० ॥२॥ कहत नाम प प्रश्नावे ने यानिधि कृषाना नियान, परमेश्वर पट्टहै-उपदेश है। अट्ठा श्रा पावन देवाणिय भयो ! बैन दर्शन ने शुद्र, ओचन्वना बाले, ते प्रथम श्रीतो सम राग ऐप हित में सम परिगामी पणा न रमास दल तमा नीट नाम गाय है । पनले अन्य मताहिये दैदनी विवाद आयी कोई ऋथन संबंधी जैन नियौ नो रिंग पान तो समता प्रवते । देहवो प्रागी छम-शानावरशीयाद महामेल नै नाम आमा नै ऊजळो करे पछै आशुत्र श्री अग्री अमन्य छ ने चुनाव मंत्र श्री निगवे । नवी यो आमा बहुर नाम का पाप-प्रागादिपानादि मल मेटने अनिम अट में प्रबल अंग में नाम आम स्त्रन्य अंगने त मैलने न बार नाम न लगा पनले कनीन्है । तेहला यो आमा अम्भिक बल्ल ने माझाचार ऋग्वानी स्लप करें
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy