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________________ . सूत्र पन्त्री महानुपन्छी बाण पर धारे में पंन्त्री उनां ने गळदळ उड़ी है नयी ची गयो पग यी सुन्नु नी बड़ी माही पाछा उगम त्रयीं एक पत्री निगळी मुव बड़ी लेई ने दिन नौ निम मिनी बसी जाय । प. छान बंछ लिया बागांच्या । नी नअंता कथन में न प्रबन्यो । आई आई इन अहिन्यै नओ नी मदान्न बत्र छ। को श्रीनो पन न मानवों ? विहां छिन्-श्रा पोताना मन मंत्री ऋचन मिटान्नान नाई नटन्छा नाह नो पिटान्दोक ग्रनने कथन मुनां नाय नै जिहां पनामनियां ने रक्षा नी, दयामनियों ने दयानी, नंदनदियों ने मननी, त्रियामनिया ने कियानो निचे वादियों ने निचे नो अग्गानिक वादियों ने पनाम नी, अल वादियों ने बाल नौ ऋयन सिदान्नां में आयां ना मन मंगी मन नय नी ऋयन यात्री ने पोताना ऋथननी मुत्र्यता बनावे, अन्यनी न्यूनता । वेत्रों में चं ने मंत्र पर परणित अपणी कर माने, किरिया गर गहछौं । उन, कही जैन क्यू कहिये, मो मृण्व में पहिछौं । प० ! जें ॥५॥ पर दोन्चना नो--( ) इन्न । परं न पान कहवा के परपति नाम आभित्र भवन्प यी लिन नदी पर बड़ी संबंधित कुन्त्यादि पर्गर्न पग्गयों छनौ बड़ संवि शुगर आम नागादिक ने छावना छठा उदन प्रदर्दनादै प्रहनी, नन में पडवो विवाग्दो " बोटन दाबा नौ अंगाल ही गना देवीप सहन्य प्रकारे माकड़ी गहन्यै नो प्रिया बन निमान्य । पर ण्डको नयी बागत किया बड़ धर्मा आमा नौ बन नयी | लिया ने नवनी यो माननी दिन गा लिया अन्य व्याने प्रवनमा अन्य इनवान अवनिया का नोदन्त्री ने पहबूं दो न विचार पसंधियाबडापना नाम दिया न्दनाक । नेपन कंचन क्रियान है दो मिन विचारे क्रियाना गई बार में गहलो उन्नु नहा है। उन नाल नेत्रा क्रिया सत्रा में पळे निदल दिया ने पलं आप ही सिद्ध मावन न ऋो, ने बिना मान ही पग्न नबिक पाग्यामिक परकर न बन जान किन बन्यो आय । दयी नवं दिया नत्री में जैन दर्शनी क्यु ऋहिये युऋया नाय नाप ने बेनी नहीं। -" गर्न हड़ मिन्छ" इति जिन बचन प्राणायान । " पडले न्हवा ने जैन दशानी न ऋाय किम निहां डि जेन मशंदछन्दई महापान अनाई अमन्त्री, निर्गत हटवादी, म गर्वनी, पन्द्र श्री नवान, अदाबान, तबलत्री पट्टवायी बैन शन सन्त्राय ने 5 अरहिन, मायावी, माली, इनाही, मल पन अवाम मा नय शी निडर, अश्रदी, नबाउन्त्र नो अगवणी, अड़ नहीं लियाबादी छटो संबलंक समझे एहबू है छैन संपूर्ण श्रम में छै नै मलों में पहिया गाना ! जैन मात्र अब दानी महि, छिब मापन पदहिये पन्न देव मंका नहि क्रीन, मात्र उदासी रहिये ।। ५० 1 ज० ॥६॥
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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