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__ उन्हनि कई विख्यात विद्वानां और ऋत्रियों की कृतियों पर विशद गद्य ववनिकाएँ लिखी हैं, जिनसे उनके स्पष्ट वक्तृत्व और निडर समालोचक होने का परिचय मिलता है। श्रीमद आनंदधनजी को चौबीसी के बालावतोब में श्री ज्ञानविमलमुरिजी को खुब आई हाथी लिया है, और कई स्थानों में उनके वाचावबोध की कड़ी समालोचना की है । अनु में उन्होंने लिखा है कि:___ "ज्ञानविमलमूरि महापंडिन हुँना, नेट प. उपयोगी नीश प्रयूंओं हुंन नौ नेउ नौ समर्थ अर्थ कर्ग सकना पण तंउ प. नो अर्थ करने विचारणा अन्यन्न न्यून ल करी नै मैं ज्ञानंसार मारी बुद्धि अनुसार सं. १८२१. श्री विचारत सं १८६६ श्री कृष्णगढ़ मध्ये टबो लिान्यो पर मैं इतग वरसां विचार विचारता ही सा सिद्धी थई तहवी मोटी पंडित विनार विचार लिखितौनी संपूर्ण अर्थ पाती। पर ज्ञानत्रिमलमूरि जाये तो असमल आगरी यु मोदो बच्चों को नको तांग न समझ तिमि ज्ञानविमलमूरिनी ये पिण लिम्बतां लक्षण न अटकावी एज पंडिताईनो लक्षणं निद्वार कोनो अर्थ व्यर्थ अर्थ समर्थिन नी गिणनां न गिणी |"
इसी प्रकार स्पष्ट वक्तव के नातं यानंदघननी ने महापुरुषों पर भी एक जगह कुछ आलोचना की है। आध्यात्म-अनुभवी श्रीमद् देवचंद्रजी की दो कृनियों पर उन्होंने बालावबोध रचा। उनमें भी कई स्थानों में उनकी विशद समालोचना की है। साधु सज्झाय वालावबोध' में तो कई घात बड़ी ही मनोरंजक और रहस्यमयी कह डाली है। उपयोगी होन में उनके कुछ अवतरण यहां देते हैं:
ध्रुव छ तो कयन क्षायिक मात्र छै परचायिक भाव आतम वित्त ने पिद्ध, मां नो अमंदोपचारी पशुं प. विरोधाभास है....
पह जे ऋयु ए आयिक भावं कथन ते विशेष इति सटंक। हिवे आगल सम्झाय नी गाथाओं मा यो वर्णन करम्यो । परंप ऋविराज नी योजना नो पज मुम्झाय के तेज बात नै गटर पटर आग नो पाछे नी आगे हांकना चाल्यो जाय तं तम पति विचारी लग्यो संवन्ध विरुद्ध अंगोपांग मेग़ ऋविता बारंबार एक पर गुंथाणां ने पुनरुक्ति दूपण ऋविता ते पहीन सम्झाय में तमे ही नोइ लेज्यो एक निज पद रस नाग्या गुर्थी , ने गिण लग्यो पकलो मुझने पण मत देव्यो । बीज पहनी छूटक लिम्वन समनयाश्रयी सतमंगायी चुम्त के स्वरूप नी कथन नी योजना एमां नो गटर पटर के "बिना बीजी महिन छूटक योजना सटंक छ । योजना कवी ए पिण विद्या न्यारी है, कौमुदी काय शिष्य थी आध क्लीक कराया, आप थी न थयो । बछी ए बात खुली न लिम्बु तो ए लिखन वांचंण बालो मूशखर जाणं ए कारण लिम्बु । गुनगन में ए हिवन के-"आनंदवन टंकशाली, जिनराममूरि बाया अबश्य बचनी. ३० यशोविजय टानर टुनगिया पति थाप्यो तेज उथाप्यो, उ० . . # આ કવિન એમને કથા મળી ? આજે આ કહેવત ગુજરાતમાં તે જ નથી. વળી આ લખાણમાં અનિતાસિક પાન અંશ વધુ છે. જેથી અને સંપૂર્ણ પ્રામાણિક ક્કી ન શકાય. સંપા