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________________ पड़कमणा पोसा न करावे, करता देख्या रानी । पञ्चखाणे व्याख्यान न आग्रह, आग्रह थी न विराजी ।१९। सा० गो हमरी कोउ करे निन्दा, किंचित अमरस आवे । । फिर मनमें जग रीति विचारें अब अति ही पछतावे ॥१३॥ सा० क्रोधी मानी मायी लोभी, रागी द्वेषी यौद्धी । साधुपनानो लेश न देश, न अविवेकी अपयोधी ।१४। सा० प हमरी हम चर्चा भाखी, पै इनमें इक सारा। जो हम शानसार गुण चीन्हे, तो हुवे भवदधि पारा ।१५। सा० उन्होंने वृद्धावस्था में गच्छ परंपगदि से अलग होकर एकाकी रहने और विहार करने का उल्लेख 'आनंदघन चौबीसी वालावबोध' में इस प्रकार किया है कि वै प० ज्ञानसार प्रथम भट्टारक खरतरगच्छ संप्रदायी वृद्धवयोन्मुखिमै सर्वगच्छ परंपरा संबंधी हठवाद स्वेच्छायें मूकी एकाकी विठारिय कृष्णगढ़े सं. १८६६ बावीसी- अर्थ लिख्यु । यद्यपि श्रीमद् का अनुभव एवं ज्ञान बहुत वढा-चढा था, फिर भी उन्होंने कई ग्रंथों में मंद-बुद्धि आदि शब्दों द्वारा अपना परिचय देकर विनम्रता प्रदर्शित की है । देवचंद्रजी कृत 'साधुपद सज्झाय के बालावबोध' में लिखते हैं हूँ महा निर्बुद्धि को वज्रठार छु जैन ऐ जिन्दो छु म्हारो माजणो अति अल्प छ । सज्झाय कर्तानो माजणो मोटो छ । इसी प्रकार 'चौवीसी वालावबोध' आदि में भी अपनी लघुता व्यक्त की है । आत्मनिंदा' ग्रंथ तो उनकी विनम्रता का प्रतीक है । आध्यात्म-साधना और तत्त्वज्ञान के अतिरिक्त वैदक में भी श्रीमद् की अच्छी गति थी। लेखन-कला और तत्संबंधी सामग्री के निर्माण में वह अद्वितीय थे । उनके बनाए हुए प्ठे, फाटिये, परड़ी आदि आज भी नामांकित वस्तुओं में हैं, जिन की मजबूती और सुंदरता की बराबरी में दूसरे नहीं आ सकते । अब भी वे "नारायण साही' नाम से सुप्रसिद्ध हैं। लेखनशैली प्रौढ़ और लिपि बड़ी मनोहर थी। उनकी हस्त-लिपि हमारे संग्रह में पर्याप्त है, जिन में से एक पत्र का फोटो हमारे ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह' में प्रकाशित है । वह अनेक हुनरों में निपुण थे, यह बात स्वयं 'बोसो' में लिखते हैं: हुन्नर केता हाथे कीधा ने पण उदय उपाये सीधा। जस उपजायो जस उदय थी, मंद लोम ते मंदोदय थी ॥३॥ (१२ वां स्तवन) इसके संबंध में उनके गुण-वर्णनात्मक काव्यों में अन्य भक्तों ने भी कहा है किःकर्मे विश्वकर्मा सौ हुन्नर हजार जाके वैधन में जान सब ज्योतिष मंत्र तंत्र कौ ॥ (नवलराय कृत गुणवर्णन)
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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