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________________ श्रीयनोविजय उपाध्याय कुन नवार्थगीत के वित्रंत्रक श्रीमद ज्ञानसागजी [ श्रीयुन मंबालाल नाहटा] उपाध्याय यांविजयी मनाही और अठारहवीं शनी के जैन शामन के तनम्त्री नक्षत्र थे। उनके यी पाण्डव्य प्रतिमा विग्न ही ष्टिगोचर होती है। आपने माहिंन्य निमांग भी बहुत अधिक कप में लिया है। पन्कुन, प्राकृत, हिन्दी और गुदगती, चारी भाषाओं में आपकी डम्बनी चली । न्याय और अन नबहान पानी आपच बन बहुत ही प्रनाम्न हुआ है ऐसे महाविद्यान का म्मुनि मंदिर बनवाया गया है, यह जैन समाज के लिए बहुत ही गौरव की बात है। महापुरुषों श्री ऋनियाँ ही हमें यथ-प्रदर्शन अग्नी है और उनके आदर्श चरित्र बंड़ प्रेरणादायक होते हैं। उपाध्यायही के साहित्य पर टिपान करने पर वे पर दीवन में आधारमाभिमुख विशेष हो गए प्रनीन इंति है। संभव है श्रीपद आनंदयानजी के मिलन श्रा प्रभाव भी इसमें बहुन कुछ प्रेरणादायक हुआ हो। गहन में बानमार, प्राधाममार आदि ग्रंथ नया मापान सुमनाशनक, समाधिचन पदाधि उपक अनबन साहरा है। बद्र है कि महायुरूप की अनेक ग्चना विगत २५० वाम काल में ही हो गई। मान रचनाश्री में भी कई ग्रंथोत्री दीपक पनि ही मिश्री वे हममें उनकी बहुन मी रचनाओं का प्रसार हुआ ही नहीं सिद्ध होता है। गजन्यान के अंक ज्ञान मांग का हमने अबलोचन श्या है, मं यह बान और मी पुष्ट होती है। यहाँ के झान-मपान में आयायनी के कुछ प्रमिद्र ग्रंथी को छोड़ कर अधिकांश ग्रंथों की प्रानयाँ ही प्रायः नहीं मिलती 120 बी शादी में इन विट्टल में जो प्रोद प्रतिमा पहल देखनमें आनी थी, उसमें क्रमशः छाप इंना गया नीट होना है। आध्यायनी के बाद श्रीमद देवचंद्रनी में जैन नबनान और आध्यात्मिक क्षेत्र विश्रद अनुमत्र देखने को मिला है। उनकी आध्यात्मिक ग्रंग्णा श्वाधान मंगट अ मुनान में विपनः दिगम्बर आयामिक ग्रंथों में प्रांत हुश्रा और गुनगन में उपना मोचविलाप हुआ आयाग्रही मालीन विद्वानी में विनयविनयनी, मेघविनयनी, आनन्दयनजी, अदि किए का संन्त्र के अन्य है। उनी शनादी में एक अन्यमिक महापाइम टि. दर्शन पात है। है बरतरगछांय गिगन श्रीमद, बानपारनी । श्रानंदवनना श्री बनाया में आपका अगाध प्रेम था।
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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