SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ जड रूप है और हमारी आमा चैतन्य-स्वभावी है। इस तरह के प्रमेद प्रगट होने पर आसान को कौन रोक सकता है: ----- 66 शुयुगल ने पर जीव श्रीरे थप्पा, कानो मंद विज्ञान " stear दूरे अन्या, हिय कुण रोक छानने । सुग्यानी कन्या ॥ इन अमूल्य उपदेशों की सुनकर राजकुमार्ग मंजना हुई और आमा व संसार तथा उसकी तथा मौलिक वस्तुओं की क्षण-संगुरता पर विचार करने विचार की तन्मयता ias is for होने की | अपनी ध्यानावस्था में उसे अपना आय-बोध मान होने लगा और वह बोल उठी। उसे कवि के शब्दों में सुनिये - S प्रजना चिन्तये दे अप्पानं के अनादि अनन्त, का रे अन्या, सहन अन महन्त रे ॥ " इस प्रकार उसे आध्यात्मिक ध्यान करने हुवे उप कैवल्य ज्ञान हो गया । राजकुमाल मुनि के मध्याय में अध्यात्मिक का प्रवाह अच्छे ढंग किया है । गजमुकुमाल पुरुषोतम श्रीकृष्ण के महोदर लघु-धाना थे । मात्रा का उन पर अगाध स्नेह था। भगवान नेमिनाथ के द्वारिका पुरी के उद्यान में पधारने पर श्रीकृष्ण के साथ कुमार भी प्रदर्शन करने गये । aria ने देशना में श्रध्यायनका निरुपण किया कि सम्यक दर्शन, ज्ञान और चारित्र ही वास्तविक सुख की खान है और आम भाव द्वारा ही ये त्र्यम् आमा को अन्दर देदिप्यमान होते हैं । पनि संयोगी आय है । ये शुद्ध स्वभाव नहीं, विमाय अवस्था है । क्रमादि उपाधि में थामा स्वभावनः मित्र है। ऐसी वा पूर्वक आत्मा में स्थिर रहने से शुद्ध स्वभाव प्रकट होता है। मधु के वचन सुनकर राजकुमार मग हो जाता है और विचार लगाता है। जिसे श्रीमद कहते है : "s safe मुह गुणमहि, वो किम रहे मुझ प मांहि । जेथी घाये vिa तत्य, तेहनी संग करे कुण सत्त्य ॥ "3 घर आकर कुमार अपनी माता श्री देवी से कहते हैं कि मां । प्रभु देखना बड़ा ही सुन्दर है ।। सुनकर माना प्रसन्न होती है । पर जब कुमार राजकुमार माता से भगवान के पास स्वयं दशा देने को कहते हैं तो माता का चना कर कुमार का मन संयम हैं श्रीमद के उद्गार निकलते हो जाता है। ये कुमार की संयम की कठोरता, करना चाहती है नय कुमारके मुंह से जी पा! सुनिये | और देखिए इनकी मार्मिकताः-माताजी निज घर श्रांगण जी, बालक से निरीह है। ana aane में रमण करता किसी बीहरे || " "
SR No.010845
Book TitleYashovijay Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1957
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy